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लोम॑भ्यः॒ स्वाहा॒ लोम॑भ्यः॒ स्वाहा॑ त्व॒चे स्वाहा॑ त्व॒चे स्वाहा॒ लोहि॑ताय॒ स्वाहा॒ लोहि॑ताय॒ स्वाहा॒ मेदो॑भ्यः॒ स्वाहा॒ मेदो॑भ्यः॒ स्वाहा॑। मा॒सेभ्यः॒ स्वाहा॑ मा॒सेभ्यः॒ स्वाहा॒ स्नाव॑भ्यः॒ स्वाहा॒ स्नाव॑भ्यः॒ स्वाहा॒ऽस्थभ्यः॒ स्वाहा॒ऽस्थभ्यः॒ स्वाहा॑ म॒ज्जभ्यः॒ स्वाहा॑ म॒ज्जभ्यः॒ स्वाहा॑। रेत॑से॒ स्वाहा॑ पा॒यवे॒ स्वाहा॑ ॥१० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

लोम॑भ्य॒ इति॒ लोम॑ऽभ्यः। स्वाहा॑। लोम॑भ्य॒ इति॒ लोम॑ऽभ्यः। स्वाहा॑। त्व॒चे। स्वाहा॑। त्व॒चे। स्वाहा॑। लोहि॑ताय। स्वाहा॑। लोहि॑ताय। स्वाहा॑। मेदो॑भ्य॒ इति॒ मेदः॑ऽभ्यः। स्वाहा॑। मेदो॑भ्य॒ इति॒ मेदः॑ऽभ्यः। स्वाहा॑। मा॒सेभ्यः॑। स्वाहा॑। मा॒सेभ्यः॑। स्वाहा॑। स्नाव॑भ्य॒ इति॒ स्नाव॑ऽभ्यः। स्वाहा॑। स्नाव॑भ्य॒ इति॒ स्नाव॑ऽभ्यः। स्वाहा॑। अ॒स्थभ्य॒ इत्य॒स्थऽभ्यः॑। स्वाहा॑। अ॒स्थभ्य॒ इत्य॒स्थऽभ्यः॑। स्वाहा॑। म॒ज्जभ्य॒ इति॑ म॒ज्जऽभ्यः॑। स्वाहा॑। म॒ज्जभ्य॒ इति॑ म॒ज्जऽभ्यः॑। स्वाहा॑। रेत॑से॑। स्वाहा॑। पा॒यवे॑। स्वाहा॑ ॥१० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:39» मन्त्र:10


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को भस्म होने तक शरीर का मन्त्रों से दाह करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि दाहकर्म में घी आदि से (लोमभ्यः) त्वचा के ऊपरले वालों के लिये (स्वाहा) इस शब्द का (लोमभ्यः) नख आदि के लिये (स्वाहा) (त्वचे) शरीर की त्वचा जलाने को (स्वाहा) (त्वचे) भीतरली त्वचा जलाने के लिये (स्वाहा) (लोहिताय) रुधिर जलाने को (स्वाहा) (लोहिताय) हृदयस्थ रुधिर पिण्ड जलाने को (स्वाहा) (मेदोभ्यः) चिकने धातुओं के जलाने को (स्वाहा) (मेदोभ्यः) सब शरीर के अवयवों को आर्द्र करनेवाले भागों के जलाने को (स्वाहा) (मांसेभ्यः) बाहरले मांसों के जलाने को (स्वाहा) (मांसेभ्यः) भीतरले मांसों के जलाने के लिये (स्वाहा) (स्नावभ्यः) स्थूल नाड़ियों के जलाने को (स्वाहा) (स्नावभ्यः) सूक्ष्म नाड़ियों के जलाने को (स्वाहा) (अस्थभ्यः) शरीरस्थ कठिन अवयवों के जलाने के लिये (स्वाहा) (अस्थभ्यः) सूक्ष्म अस्थिरूप अवयवों के जलाने को (स्वाहा) (मज्जभ्यः) हाड़ों के भीतर के धातुओं के लिये (स्वाहा) (मज्जभ्यः) उसके अन्तर्गत भाग के जलाने को (स्वाहा) (रेतसे) वीर्य के जलाने को (स्वाहा) और (पायवे) गुदारूप अवयव के दाह के लिये (स्वाहा) इस शब्द का निरन्तर प्रयोग करें ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जब तक लोम से लेकर वीर्य्य पर्यन्त उस मृत शरीर का भस्म न हो, तब तक घी और र्इंधन डाला करो ॥१० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैर्भस्मान्तं शरीरं मन्त्रैर्दाह्यमित्याह ॥

अन्वय:

(लोमभ्यः) त्वगुपरिस्थेभ्यो बालेभ्यः (स्वाहा) (लोमभ्यः) नखादिभ्यः (स्वाहा) (त्वचे) शरीरावरणदाहाय (स्वाहा) (त्वचे) तदन्तरावरणदाहाय (स्वाहा) (लोहिताय) रक्ताय (स्वाहा) (लोहिताय) हृदयस्थाय लोहितपिण्डाय (स्वाहा) (मेदोभ्यः) स्निग्धेभ्यो धातुविशेषेभ्यः (स्वाहा) (मेदोभ्यः) सर्वशरीरावयवार्द्रीकरेभ्यः (स्वाहा) (मांसेभ्यः) बहिःस्थेभ्यः (स्वाहा) (मांसेभ्यः) शरीरान्तर्गतेभ्यः (स्वाहा) (स्नावभ्यः) स्थूलनाडीभ्यः (स्वाहा) (स्नावभ्यः) सूक्ष्माभ्यः सिराभ्यः (स्वाहा) (अस्थभ्यः) शरीरस्थकठिनावयवेभ्यः (स्वाहा) (अस्थभ्यः) सूक्ष्मावयवाऽस्थिरूपेभ्यः (स्वाहा) (मज्जभ्यः) अस्थ्यन्तर्गतेभ्यो धातुभ्यः (स्वाहा) (मज्जभ्यः) तदन्तर्गतेभ्यः (स्वाहा) (रेतसे) वीर्य्याय (स्वाहा) (पायवे) गुह्यावयवदाहाय (स्वाहा) ॥१० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मनुष्यैः प्रेतक्रियायां घृतादेर्लोमभ्यः स्वाहा लोमभ्यः स्वाहा त्वचे स्वाहा त्वचे स्वाहा लोहिताय स्वाहा लोहिताय स्वाहा मेदोभ्यः स्वाहा मेदोभ्यः स्वाहा मांसेभ्यः स्वाहा मांसेभ्यः स्वाहा स्नावभ्यः स्वाहा स्नावभ्यः स्वाहाऽस्थभ्यः स्वाहाऽस्थभ्यः स्वाहा मज्जभ्यः स्वाहा मज्जभ्यः स्वाहा रेतसे स्वाहा पायवे स्वाहा सततं प्रयोज्या ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यावल्लोमान्यारभ्य वीर्यपर्यन्तस्य तच्छरीरस्य भस्म न स्यात् तावद् घृतेन्धनानि प्रक्षिपत ॥१० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जोपर्यंत केसांपासून वीर्यापर्यंतचे मृत शरीराचे भस्म होत नाही तोपर्यंत तूप व इंधन घालीत राहावे.