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स॒मु॒द्राय त्वा॒ वाता॑य॒ स्वाहा॑। सरि॒राय॑ त्वा॒ वाता॑य॒ स्वाहा॑। अ॒ना॒धृ॒ष्याय॑ त्वा॒ वाता॑य॒ स्वाहा॑। अ॒प्र॒ति॒धृ॒ष्याय॑ त्वा॒ वाता॑य॒ स्वाहा॑। अ॒व॒स्यवे॑ त्वा॒ वाता॑य॒ स्वाहा॑। अ॒शि॒मि॒दाय॑ त्वा॒ वाता॑य॒ स्वाहा॑ ॥७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒मुद्राय॑। त्वा॒। वाता॑य। स्वाहा॑। स॒रि॒राय॑। त्वा॒। वाता॑य॒। स्वाहा॑। अ॒ना॒धृष्याय॑। त्वा॒। वाता॑य। स्वाहा॑। अ॒प्र॒ति॒धृ॒ष्यायेत्य॑प्रति॑ऽधृ॒ष्याय॑। त्वा॒। वाता॑य। स्वाहा॑। अ॒व॒स्यवे॑ त्वा॒। वाता॑य। स्वाहा॑। अ॒शि॒मि॒दायेत्य॑शिमि॒ऽदाय॑। त्वा॒। वाता॑य। स्वाहा॑ ॥७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:38» मन्त्र:7


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विवाह किये स्त्रीपुरुष क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि वा पुरुष ! मैं (स्वाहा) सत्य से (समुद्राय) आकाश में चलने के अर्थ (वाताय) वायुविद्या वा वायु के शोधन के लिये (त्वा) तुझको (स्वाहा) सत्यक्रिया से (सरिराय) जल के तथा (वाताय) घर के वायु के शोधने के लिये (त्वा) तुझको (स्वाहा) सत्यवाणी से (अनाधृष्याय) भय और धमकाने से रहित होने के लिये (वाताय) ओषधिस्थ वायु के जानने को (त्वा) तुझको (स्वाहा) सत्यवाणी वा क्रिया से (अप्रतिधृष्याय) नहीं धमकाने योग्यों के प्रति वर्त्तमान के अर्थ (वाताय) वायु के वेग की गति जानने के लिये (त्वा) तुझको (स्वाहा) सत्यक्रिया से (अवस्यवे) अपनी रक्षा चाहनेवाले के अर्थ तथा (वाताय) प्राणशक्ति को विशेष जानने के लिये (त्वा) तुझको और (स्वाहा) सत्यक्रिया से (अशिमिदाय) भोग्य अन्न जिसमें स्नेह करनेवाला है, उस रस और (वाताय) उदान वायु के लिये (त्वा) तुझको समीप स्वीकार करता हूँ ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में पूर्व मन्त्र में से (उप, यच्छामि) इन पदों की अनुवृत्ति आती है। विवाह किये हुए स्त्री-पुरुष सृष्टिविद्या की उन्नति के लिये प्रयत्न किया करें ॥७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः कृतविवाहौ स्त्रीपुंसौ किं कुर्यातामित्याह ॥

अन्वय:

(समुद्राय) अन्तरिक्षे गमनाय (त्वा) त्वाम् (वाताय) वायुविद्यायै वायोः शोधनाय वा (स्वाहा) सत्यया वाचा क्रियया वा (सरिराय) उदकशोधनाय (त्वा) (वाताय) गृहस्थाय वायवे (स्वाहा) (अनाधृष्याय) भयधर्षणराहित्याय (त्वा) (वाताय) ओषधिस्थवायुविज्ञानाय (स्वाहा) (अप्रतिधृष्याय) अधर्षितुं योग्यान् प्रति वर्त्तमानाय (त्वा) (वाताय) वायुवेगगतिविज्ञानाय (स्वाहा) (अवस्यवे) आत्मनोऽवमिच्छवे (त्वा) (वाताय) प्राणशक्तिविज्ञानाय (स्वाहा) (वाताय) उदानाय (स्वाहा) ॥७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि पुरुष वाऽहं स्वाहा समुद्राय वाताय त्वा स्वाहा सरिराय वाताय त्वा स्वाहाऽनाधृष्याय वाताय त्वा स्वाहाऽप्रतिधृष्याय वाताय त्वा स्वाहाऽवस्यवे वाताय त्वा स्वाहाऽशिमिदाय वाताय त्वोपयच्छामि ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र पूर्वस्मान्मन्त्रादुपयच्छामिति पदे अनुवर्त्तेते। कृतविवाहौ स्त्री-पुरुषौ सृष्टिविद्योन्नतये प्रयतेयाताम् ॥७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात पूर्वीच्या मंत्रातील (उप, यच्छामि) या पदांची अनुवृत्ती होते. विवाह करणाऱ्या स्री-पुरुषांनी सृष्टिविद्या उन्नत व्हावी यासाठी प्रयत्न करावा.