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मयि॒ त्यदि॑न्द्रि॒यं बृ॒हन्मयि॒ दक्षो॒ मयि॒ क्रतुः॑। घ॒र्मस्त्रि॒शुग्वि रा॑जति वि॒राजा॒ ज्योति॑षा स॒ह ब्रह्म॑णा॒ तेज॑सा स॒ह ॥२७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मयि॑। त्यत्। इ॒न्द्रि॒यम्। बृ॒हत्। मयि॑। दक्षः॑। मयि॑। क्रतुः॑ ॥ घ॒र्मः। त्रि॒शुगिति॑ त्रि॒ऽशुक्। वि। रा॒ज॒ति॒। वि॒राजेति॑ वि॒ऽराजा॑। ज्योति॑षा। स॒ह। ब्रह्म॑णा। तेज॑सा। स॒ह ॥२७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:38» मन्त्र:27


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मनुष्यों को क्या वस्तु सुख देता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (विराजा) विशेषकर प्रकाशक (ज्योतिषा) प्रदीप्त ज्योति के (सह) साथ और (ब्रह्मणा, तेजसा) तीक्ष्ण कार्यसाधक धन के (सह) साथ (त्रिशुक्) कोमल, मध्यम और तीव्र दीप्तियोंवाला (घर्मः) प्रताप (विराजति) विशेष प्रकाशित होता है, वैसे (मयि) मुझ जीवात्मा में (बृहत्) बड़े (त्यत्) उस (इन्द्रियम्) मन आदि इन्द्रिय (मयि) मुझ में (दक्षः) बल और (मयि) मुझ में (क्रतुः) बुद्धि वा कर्म विशेषकर प्रकाशित होता है, वैसे तुम लोगों के बीच भी यह विशेषकर प्रकाशित होवे ॥२७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे अग्नि, विद्युत् और सूर्यरूप से तीन प्रकार का प्रकाश जगत् को प्रकाशित करता है, वैसे उत्तम बल, कर्म, बुद्धि, धर्म से संचित धन, जीता गया इन्द्रिय महान् सुख को देता है ॥२७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मनुष्यान् किं सुखयतीत्याह ॥

अन्वय:

(मयि) इन्द्रे जीवत्मनि (त्यत्) तत् (इन्द्रियम्) मन आदि (बृहत्) महत् (मयि) (दक्षः) बलम् (मयि) (क्रतुः) प्रज्ञा कर्म वा (घर्मः) प्रतापो यज्ञो वा (त्रिशुक्) तिस्रो मृदुमध्यतीव्रा दीप्तयो यस्य सः (वि राजति) विशेषेण प्रकाशते (विराजा) विशेषेण प्रकाशेन (ज्योतिषा) द्योतमानेन (सह) (ब्रह्मणा) धनेन (तेजसा) तीक्ष्णेन (सह) ॥२७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा विराजा ज्योतिषा सह ब्रह्मणा तेजसा सह च त्रिशुग् घर्मो विराजति, तथा मयि बृहत् त्यदिन्दियं मयि दक्षो मयि क्रतुर्विराजति तथा युष्मासु स्वयं विराजताम् ॥२७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! यथाऽग्निविद्युत्सूर्य्यरूपेण त्रिविधः प्रकाशो जगत् प्रकाशयति, तथोत्तमं बलं कर्म प्रज्ञा धर्मसञ्चितं धनं जितमिन्द्रयं बृहत्सुखं प्रयच्छति ॥२७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे अग्नी, विद्युत व सूर्य या तीन रूपांनी जग प्रकाशित होते. तसे उत्तम बल, कर्म, बुद्धी धर्माने प्राप्त केलेले धन व जितेंद्रियता यामुळे माणसांना महान सुख प्राप्त होते.