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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब अग्नि के मिष से योगियों के कर्त्तव्य विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे परमेश्वर ! जो आप हमारे आत्माओं में (एधः) प्रकाश करनेवाले इन्धन के तुल्य प्रकाशक (असि) हैं, (समित्) सम्यक् प्रदीप्त समिधा के समान (असि) हैं, (तेजः) प्रकाशमय बिजुली के तुल्य सब विद्या के दिखानेवाले (असि) हैं, सो आप (मयि) मुझ में (तेजः) तेज को (धेहि) धारण कीजिये, आपको प्राप्त होकर हम लोग (एधिषीमहि) सब ओर से वृद्धि को प्राप्त होवें ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे र्इंधन से और घी से अग्नि की ज्वाला बढ़ती है, वैसे उपासना किये जगदीश्वर से योगियों के आत्मा प्रकाशित होते हैं ॥२५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथाऽग्निमिषेण योगिकृत्यमाह ॥
अन्वय:
(एधः) इन्धते प्रदीपयन्ति येन तद्वत् (असि) (एधिषीमहि) सर्वतो वर्द्धयेम (समित्) सम्यक् प्रदीप्तेव (असि) (तेजः) प्रकाशमयः (असि) (तेजः) (मयि) (धेहि) ॥२५ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे परमेश्वर ! यस्त्वमस्मदात्मस्वेध इव प्रकाशकोऽसि, समिदिवाऽसि तेजोवत् सर्वविद्यादर्शकोऽसि, स त्वं मयि तेजो धेहि, भवन्तं प्राप्य वयमेधिषीमहि ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यथेन्धनेन घृतेन चाग्नेर्ज्वाला वर्द्धते, तथैवोपासितेन जगदीश्वरेण योगिनामात्मानः प्रकाशिता भवन्ति ॥२५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! इंधनाने व तुपाने जशी अग्नीची ज्वाला वाढते तसे उपासना केल्याने योग्याच्या आत्म्यात परमेश्वर प्रकाश पाडतो.