बार पढ़ा गया
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (घर्म) अत्यन्त पूजनीय सब ओर से प्रकाशमय जगदीश्वर वा विद्वन् ! जो (एतत्) यह (ते) आपका (पुरीषम्) व्याप्ति वा पालन है (तेन) उससे आप (वर्द्धस्व) बुद्धि को प्राप्त हूजिये (च) और दूसरों को बढ़ाइये। आप स्वयं (आ, प्यायस्व) पुष्ट हूजिये (च) और दूसरों को पुष्ट कीजिये, आपकी कृपा वा शिक्षा से जैसे (वयम्) हम लोग (वर्द्धिषीमहि) पूर्ण वृद्धि को पावें (च) और वैसे ही दूसरों को बढ़ावें (च) और जैसे हम लोग (आ, प्यासिषीमहि) सब ओर से बढ़ें, वैसे दूसरों को निरन्तर पुष्ट करें, वैसे तुम लोग भी करो ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेष और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे मनुष्यो ! जैसे सर्वत्र अभिव्याप्त ईश्वर ने सबकी रक्षा वा पुष्टि की है, वैसे ही बढ़े हुए पुष्ट हम लोगों को चाहिये कि सब जीवों को बढ़ावें और पुष्ट करें ॥२१ ॥
बार पढ़ा गया
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(घर्म) पूजनीयतम ! (एतत्) (ते) तव (पुरीषम्) व्यापनं पालनं वा (तेन) (वर्द्धस्व) (च) (आ) (च) (प्यायस्व) पुषाण (वर्द्धिषीमहि) पूर्णां वृद्धिं प्राप्नुयाम (च) (वयम्) (आ) (च) (प्यासिषीमहि) सर्वतो वर्द्धेम ॥२१ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे घर्म ! सर्वतः प्रकाशमय जगदीश्वर विद्वन् ! वा यदेतत्ते पुरीषमस्ति, तेन त्वं वर्द्धस्व चाऽन्यान् वर्द्धय, स्वयमाप्यायस्वाऽन्यांश्च पोषय। तव कृपया शिक्षया वा यथा वयं वर्द्धिषीमहि, तथा चाऽन्यान् वयं वर्द्धयेम। यथा च वयमाप्यासिषीमहि तथाऽन्यान् समन्ततः पोषयेम तथा यूयमपि कुरुत ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषवाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे मनुष्याः ! यथेश्वरेण सर्वत्राभिव्याप्तेन सर्वं रक्ष्यते पोष्यते च, तथैव वर्द्धमानैः पुष्टैरस्माभिः सर्वे जीवा वर्द्धनीयाः पोषणीयाश्च ॥२१ ॥
बार पढ़ा गया
मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेष व वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! सर्वत्र व्याप्त असलेल्या ईश्वराने सर्वांचे रक्षण किंवा पोषण केलेले आहे, तसेच आम्हीही सर्व जीवांना वाढवावे व बलवान करावे.