वांछित मन्त्र चुनें

क्ष॒त्रस्य॑ त्वा प॒रस्पा॑य॒ ब्रह्म॑णस्त॒न्वं᳖ पाहि। विश॑स्त्वा॒ धर्म॑णा व॒यमनु॑ क्रामाम सुवि॒ताय॒ नव्य॑से ॥१९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क्ष॒त्रस्य॑ त्वा॒। प॒रस्पा॑य। प॒रःपा॒येति॑ प॒रःऽपा॑य। ब्रह्म॑णः। त॒न्व᳖म्। पा॒हि ॥ विशः॑। त्वा॒। धर्म॑णा। व॒यम्। अनु॑। क्रा॒मा॒म। सु॒वि॒ताय॑। नव्य॑से ॥१९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:38» मन्त्र:19


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजा और प्रजा क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! वा राणी ! आप (परस्पाय) जिस कर्म से दूसरों की रक्षा हो, उस के लिये (क्षत्रस्य) क्षत्रिय कुल वा राज्य के तथा (ब्रह्मणः) वेदवित् ब्राह्मणकुल के सम्बन्धी (त्वा) आपके (तन्वम्) शरीर की (पाहि) रक्षा कीजिये, जैसे (वयम्) हम लोग (नव्यसे) नवीन (सुविताय) ऐश्वर्य्य की प्राप्ति के लिये (धर्मणा) धर्म के साथ (अनुक्रामाम) अनुकूल चलें, वैसे ही धर्म के साथ वर्त्तमान (त्वा) आपके अनुकूल (विशः) प्रजाजन चलें ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - राजा और राजपुरुषों को योग्य है कि धर्म के साथ विद्वानों और प्रजाजनों की रक्षा करें। वैसे ही प्रजा और राजपुरुषों को चाहिये कि राजा की सदैव रक्षा करें। इस प्रकार न्याय तथा विनय के साथ वर्त्तकर राजा और प्रजा नवीन ऐश्वर्य की उन्नति किया करें ॥१९ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजप्रजे किं कुर्य्यातामित्याह ॥

अन्वय:

(क्षत्रस्य) राजन्यकुलस्य राष्ट्रस्य वा (त्वा) त्वाम् (परस्पाय) येन परानन्यान् पाति तस्मै (ब्रह्मणः) ब्रह्मविदः (तन्वम्) शरीरम् (पाहि) (विशः) मनुष्यादिप्रजाः। विश इति मनुष्यानामसु पठितम् ॥ (निघं०२.३) (त्वा) त्वाम् (धर्मणा) धर्मेण (वयम्) (अनु) (क्रामाम) अनुक्रमेण गच्छेम (सुविताय) ऐश्वर्य्यप्राप्तये (नव्यसे) अतिशयेन नवीनाय ॥१९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! राज्ञि वा ! त्वं परस्पाय क्षत्रस्य ब्रह्मणस्त्वा तन्वं पाहि। यथा वयं नव्यसे सुविताय धर्मणाऽनुक्रमाम, तथैव धर्मेण वर्त्तमानं त्वा विशोऽनुगच्छन्तु ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - राजा राजपुरुषैश्च धर्मेण विदुषः प्रजाश्च संरक्षणीयाः। एवं प्रजाभी राजपुरुषैश्च राजा सदा संरक्षणीय एवं न्यायविनयाभ्यां वर्त्तित्वा राजप्रजे नूतनमैश्वर्य्यमुन्नयेताम् ॥१९ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजा व राजपुरुष यांनी विद्वान व प्रजा यांचे धर्माने रक्षण करावे, तसेच प्रजा व राजपुरुष यांनी राजाचे रक्षण करावे. याप्रमाणे न्यायाने आणि नम्रतेने वागून राजा व प्रजा यांनी ऐश्वर्य वाढवावे.