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स्वाहा॑ पू॒ष्णे शर॑से॒ स्वाहा॒ ग्राव॑भ्यः॒ स्वाहा॑ प्रतिर॒वेभ्यः॑। स्वाहा॑ पि॒तृभ्य॑ऽ ऊ॒र्ध्वब॑र्हिर्भ्यो घर्म॒पावभ्यः॒ स्वाहा॒ द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॒ स्वाहा॒ विश्वे॑भ्यो दे॒वेभ्यः॑ ॥१५ ॥

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पद पाठ

स्वाहा॑। पू॒ष्णे। शर॑से। स्वाहा॑। ग्राव॑भ्य॒ इति॒ ग्राव॑ऽभ्यः। स्वाहा॑। प्र॒ति॒र॒वेभ्य॒ इति॑ प्रतिऽर॒वेभ्यः॑ ॥ स्वाहा॑। पि॒तृभ्य॒ इति॒ पि॒तृऽभ्यः॑। ऊ॒र्ध्वब॑र्हिभ्य॒ इत्यू॒र्ध्वऽब॑र्हिःऽभ्यः। घ॒र्म॒पाव॑भ्य॒ इति॑ घर्म॒ऽपाव॑भ्यः। स्वाहा॑। द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॑म्। स्वाहा॑। विश्वे॑भ्यः। दे॒वेभ्यः॑ ॥१५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:38» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - स्त्री-पुरुष को योग्य है कि (पूष्णे) पुष्टिकारक (शरसे) हिंसक के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया अर्थात् अधर्म से बचाने का उपाय (प्रतिरवेभ्यः) शब्द के प्रति शब्द करनेहारों के लिये (स्वाहा) सत्यवाणी (ग्रावभ्यः) गर्जनेवाले मेघों के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (ऊर्द्ध्वबर्हिर्भ्यः) उत्तम कक्षा तक बढ़े हुए (घर्मपावभ्यः) यज्ञ से संसार को पवित्र करनेहारे (पितृभ्यः) रक्षक ऋतुओं के तुल्य वर्त्तमान सज्जनों के लिये (स्वाहा) सत्यवाणी (द्यावापृथिवीभ्याम्) सूर्य्य और आकाश के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया और (विश्वेभ्यः) समग्र (देवेभ्यः) पृथिव्यादि वा विद्वानों के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया वा सत्यवाणी का सदा प्रयोग किया करें ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - स्त्री-पुरुषों को चाहिये कि सत्यविज्ञान और सत्यक्रिया से ऐसा पुरुषार्थ करें, जिससे सबको पुष्टि और आनन्द होवे ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(स्वाहा) सत्या क्रिया (पूष्णे) पुष्टिकारकाय (शरसे) हिंसकाय (स्वाहा) सत्या वाक् (ग्रावभ्यः) गर्जकेभ्यो मेघेभ्यः। ग्रावेति मेघनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१०) (स्वाहा) (प्रतिरवेभ्यः) ये रवान् प्रतिरुवन्ति शब्दायन्ते तेभ्यः (स्वाहा) (पितृभ्यः) पालकेभ्य ऋतव इव वर्त्तमानेभ्यः (ऊर्द्ध्वबर्हिर्भ्यः) ऊर्द्ध्वमुत्कृष्टं बर्हिर्वर्द्धनं येभ्यस्तेभ्यः (घर्मपावभ्यः) घर्मेण यज्ञेन पवित्रीकर्त्तुभ्यः (द्यावापृथिवीभ्याम्) सूर्य्यान्तरिक्षाभ्याम् (स्वाहा) (विश्वेभ्यः) समग्रेभ्यः (देवेभ्यः) दिव्येभ्यो पृथिव्यादिभ्यो विद्वद्भ्यो वा ॥१५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - स्त्रीपुरुषैः पूष्णे शरसे स्वाहा प्रतिरवेभ्यः स्वाहा ग्रावभ्यः स्वाहोर्द्ध्वबर्हिर्भ्यो घर्मपावभ्यः पितृभ्यः स्वाहा द्यावापृथिवीभ्यां स्वाहा विश्वेभ्यो देवेभ्यश्च स्वाहा सदा प्रयोज्या ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - स्त्रीपुरुषैः सत्येन विज्ञानेन सत्यया क्रिययेदृशः पुरुषार्थः कर्त्तव्यो येन विश्वं पुष्टमानन्दितं स्यात् ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - स्री-पुरुषांनी सत्य विज्ञान व सत्य क्रिया याद्वारे असा पुरुषार्थ करावा की, ज्यामुळे सर्वजण बलवान होऊन आनंदी बनावेत.