अश्व॑स्य त्वा॒ वृष्णः॑ श॒क्ना धू॑पयामि देव॒यज॑ने पृथि॒व्याः। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। अश्व॑स्य त्वा॒ वृष्णः॑ श॒क्ना धू॑पयामि देव॒यज॑ने पृथि॒व्याः। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। अश्व॑स्य त्वा॒ वृष्णः॑ श॒क्ना धू॑पयामि देव॒यज॑ने पृथि॒व्याः। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे ॥९ ॥
अश्व॑स्य। त्वा॒। वृष्णः॑। श॒क्ना। धू॒प॒या॒मि॒। दे॒व॒यज॑न॒ इति॑ देव॒ऽयज॑ने। पृ॒थि॒व्याः। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। अश्व॑स्य। त्वा॒। वृष्णः॑। श॒क्ना। धू॒प॒या॒मि॒। दे॒व॒यज॑न॒ इति॑ देव॒ऽयज॑ने। पृ॒थि॒व्याः। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। अश्व॑स्य। त्वा॒। वृष्णः॑। श॒क्ना। धू॒प॒या॒मि॒। दे॒व॒यज॑न॒ इति॑ देव॒ऽयज॑ने। पृ॒थि॒व्याः। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे ॥९ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
कौन मनुष्य सुखी होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
के मनुष्याः सुखिनो भवन्तीत्याह ॥
(अश्वस्य) वह्न्यादेः (त्वा) त्वाम् (वृष्णः) बलवतः (शक्ना) शकृता दुर्गन्धादिनिवारणसामर्थ्येन धूमादिना (धूपयामि) सन्तापयामि (देवयजने) विद्वद्यजनाधिकरणे (पृथिव्याः) अन्तरिक्षस्य (मखाय) वायुशुद्धिकरणाय (त्वा) (मखस्य) शोधकस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) (अश्वस्य) तुरङ्गस्य (त्वा) (वृष्णः) वेगवतः (शक्ना) शकृता (धूपयामि) (देवयजने) देवा यजन्ति यस्मिंस्तस्मिन् (पृथिव्याः) भूमेः (मखाय) पृथिव्यादिविज्ञानाय (त्वा) (मखस्य) तत्त्वबोधस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) (अश्वस्य) आशुगामिनः (त्वा) (वृष्णः) बलवतः (शक्ना) शकृता (धूपयामि) (देवयजने) विदुषां पूजने (पृथिव्याः) भूमेः (मखाय) उपयोगाय (त्वा) (मखस्य) (त्वा) (शीर्ष्णे) शिरसे (मखाय) (त्वा) (मखस्य) (त्वा) (शीर्ष्णे) (मखाय) (त्वा) (मखस्य) (त्वा) (शीर्ष्णे) (मखाय) (त्वा) (मखस्य) (त्वा) (शीर्ष्णे) ॥९ ॥