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अश्व॑स्य त्वा॒ वृष्णः॑ श॒क्ना धू॑पयामि देव॒यज॑ने पृथि॒व्याः। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। अश्व॑स्य त्वा॒ वृष्णः॑ श॒क्ना धू॑पयामि देव॒यज॑ने पृथि॒व्याः। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। अश्व॑स्य त्वा॒ वृष्णः॑ श॒क्ना धू॑पयामि देव॒यज॑ने पृथि॒व्याः। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे ॥९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अश्व॑स्य। त्वा॒। वृष्णः॑। श॒क्ना। धू॒प॒या॒मि॒। दे॒व॒यज॑न॒ इति॑ देव॒ऽयज॑ने। पृ॒थि॒व्याः। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। अश्व॑स्य। त्वा॒। वृष्णः॑। श॒क्ना। धू॒प॒या॒मि॒। दे॒व॒यज॑न॒ इति॑ देव॒ऽयज॑ने। पृ॒थि॒व्याः। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। अश्व॑स्य। त्वा॒। वृष्णः॑। श॒क्ना। धू॒प॒या॒मि॒। दे॒व॒यज॑न॒ इति॑ देव॒ऽयज॑ने। पृ॒थि॒व्याः। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे ॥९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:37» मन्त्र:9


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन मनुष्य सुखी होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य ! जैसे मैं (पृथिव्याः) अन्तरिक्ष के (देवयजने) विद्वानों के यज्ञस्थल में (वृष्णः) बलवान् (अश्वस्य) अग्नि आदि के (शक्ना) दुर्गन्ध के निवारण में समर्थ धूम आदि से (त्वा) तुझको (मखाय) वायु की शुद्धि करने के लिये (त्वा) तुझको (मखस्य) शोधक पुरुष के (शीर्ष्णे) शिर रोग की निवृत्ति के अर्थ (त्वा) तुझको (धूपयामि) सम्यक् तपाता हूँ। (पृथिव्याः) पृथिवी के बीच विद्वानों के (देवयजने) यज्ञस्थल में (वृष्णः) वेगवान् (अश्वस्य) घोड़े की (शक्ना) लेंडी लीद से (त्वा) तुझको (मखाय) पृथिव्यादि के ज्ञान के लिये (त्वा) तुझको (मखस्य) तत्त्वबोध के (शीर्ष्णे) उत्तम अवयव के लिये (त्वा) तुझको (मखाय) यज्ञसिद्धि के लिये (त्वा) तुझको (मखस्य) यज्ञ के (शीर्ष्णे) उत्तम अवयव की सिद्धि के लिये (त्वा) तुझको (धूपयामि) सम्यक् तपाता हूँ। (पृथिव्याः) भूमि के बीच (देवयजने) विद्वानों की पूजा के स्थल में (वृष्णः) बलवान् (अश्वस्य) शीघ्रगामी अग्नि के (शक्ना) तेज आदि से (त्वा) आपको (मखाय) उपयोग के लिये (त्वा) तुझको (मखस्य) उपयुक्त कार्य के (शीर्ष्णे) उत्तम अवयव के लिये (त्वा) तुझको (मखाय) यश के लिये (त्वा) तुझको (मखस्य) यज्ञ के (शीर्ष्णे) उत्तम अवयव के लिये (त्वा) तुझको (मखाय) यज्ञ के लिये (त्वा) आपको और (मखस्य) यज्ञ के (शीर्ष्णे) उत्तम अवयव के लिये (त्वा) तुझको (धूपयामि) सम्यक् तपाता हूँ ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में पुनरुक्ति अधिकता जताने के अर्थ है। जो मनुष्य रोगादि क्लेश की निवृत्ति के लिये अग्नि आदि पदार्थों का सम्प्रयोग करते हैं, वे सुखी होते हैं ॥९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

के मनुष्याः सुखिनो भवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(अश्वस्य) वह्न्यादेः (त्वा) त्वाम् (वृष्णः) बलवतः (शक्ना) शकृता दुर्गन्धादिनिवारणसामर्थ्येन धूमादिना (धूपयामि) सन्तापयामि (देवयजने) विद्वद्यजनाधिकरणे (पृथिव्याः) अन्तरिक्षस्य (मखाय) वायुशुद्धिकरणाय (त्वा) (मखस्य) शोधकस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) (अश्वस्य) तुरङ्गस्य (त्वा) (वृष्णः) वेगवतः (शक्ना) शकृता (धूपयामि) (देवयजने) देवा यजन्ति यस्मिंस्तस्मिन् (पृथिव्याः) भूमेः (मखाय) पृथिव्यादिविज्ञानाय (त्वा) (मखस्य) तत्त्वबोधस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) (अश्वस्य) आशुगामिनः (त्वा) (वृष्णः) बलवतः (शक्ना) शकृता (धूपयामि) (देवयजने) विदुषां पूजने (पृथिव्याः) भूमेः (मखाय) उपयोगाय (त्वा) (मखस्य) (त्वा) (शीर्ष्णे) शिरसे (मखाय) (त्वा) (मखस्य) (त्वा) (शीर्ष्णे) (मखाय) (त्वा) (मखस्य) (त्वा) (शीर्ष्णे) (मखाय) (त्वा) (मखस्य) (त्वा) (शीर्ष्णे) ॥९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य ! यथाऽहं पृथिव्या देवयजने वृष्णोऽश्वस्य शक्ना त्वा मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा धूपयामि। पृथिव्या देवयजने वृष्णोऽश्वस्य शक्ना त्वा मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा धूपयामि। पृथिव्या देवयजने वृष्णोऽश्वस्य शक्ना त्वा मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा धूपयामि ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र पुनर्वचनमतिशयित्वद्योतनार्थम्। ये मनुष्या रोगादिक्लेशनिवृत्तये वह्न्यादीन् पदार्थान् संप्रयुञ्जते, ते सुखिनो जायन्ते ॥९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात पुनरुक्ती झालेली आहे ते आधिक्य दर्शविण्यासाठीच. जी माणसे रोग वगैरेंचा नाश करण्यासाठी अग्नी इत्यादींचा योग्य प्रयोग करतात ते सुखी होतात.