वांछित मन्त्र चुनें

म॒खस्य॒ शिरो॑ऽसि। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खस्य॒ शिरो॑ऽसि। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खस्य॒ शिरो॑ऽसि। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे ॥८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒खस्य॑। शिरः॑। अ॒सि॒। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खस्य॑। शिरः॑। अ॒सि॒। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खस्य॑। शिरः॑। अ॒सि॒। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। ॥८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:37» मन्त्र:8


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य लोग विद्वान् के साथ कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जिस कारण आप (मखस्य) ब्रह्मचर्य्य आश्रमरूप यज्ञ के (शिरः) शिर के तुल्य (असि) हैं, इससे (मखाय) विद्या ग्रहण के अनुष्ठान के लिये (त्वा) आपको (मखस्य) ज्ञान सम्बन्धी (शीर्ष्णे) उत्तम व्यवहार के लिये (त्वा) आपको जिस कारण आप (मखस्य) विचाररूप यज्ञ के (शिरः) उत्तम अवयव के समान (असि) हैं, इससे (मखाय) गृहस्थों के व्यवहार के लिये (त्वा) आपको (मखस्य) यज्ञ के (शीर्ष्णे) उत्तम अवयव के लिये (त्वा) आपको जिस कारण आप (मखस्य) गृहाश्रम के (शिरः) उत्तम अवयव के समान (असि) हैं, इससे (मखाय) गृहस्थों के कार्यों को सङ्गत करने के लिये (त्वा) आपको (मखस्य) यज्ञ के (शीर्ष्णे) उत्तम शिर के समान अवयव के लिये (त्वा) आपको सेवन करें। इससे (मखाय) उत्तम व्यवहार की सिद्धि के लिये (त्वा) आपको (मखस्य) सत् व्यवहार की सिद्धि सम्बन्धी (शीर्ष्णे) उत्तम अवयव के तुल्य वर्त्तमान होने के लिये (त्वा) आपको (मखाय) योगाभ्यास के लिये (त्वा) आपको (मखस्य) साङ्गोपाङ्ग योग के (शीर्ष्णे) सर्वोपरि वर्त्तमान विषय के लिये (त्वा) आपको (मखाय) ऐश्वर्य देनेवाले के लिये (त्वा) आपको (मखस्य) ऐश्वर्य देनेवाले के (शीर्ष्णे) सर्वोत्तम कार्य के लिये (त्वा) आपको हम लोग सेवन करें ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - जो लोग सत्कार करने में उत्तम हैं, वे दूसरों को भी सत्कारी बना के मस्तक के तुल्य उत्तम अवयवोंवाले हों ॥८ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्या विदुषा सह कथं वर्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

(मखस्य) ब्रह्मचर्याख्यस्य (शिरः) मूर्द्धेव (असि) (मखाय) विद्याग्रहणानुष्ठानाय (त्वा) (मखस्य) ज्ञानस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) उत्तमव्यवहाराय (मखस्य) मननाख्यस्य (शिरः) उत्तमाङ्गवत् (असि) (मखाय) गार्हस्थ्यव्यवहाराय (त्वा) (मखस्य) (त्वा) (शीर्ष्णे) (मखस्य) गृहस्य (शिरः) शिरोवत् (असि) (मखाय) गृहस्थकार्यसङ्गतिकरणाय (त्वा) (मखस्य) (त्वा) (शीर्ष्णे) (मखाय) (त्वा) (मखस्य) सद्व्यवहारसिद्धेः (त्वा) (शीर्ष्णे) शिरोवद्वर्त्तमानाय (मखाय) योगाभ्यासाय (त्वा) (मखस्य) साङ्गोपाङ्गस्य योगस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) शिरोवत् सर्वोपरि वर्त्तमानाय (मखाय) ऐश्वर्य्यप्रदाय (त्वा) त्वाम् (मखस्य) ऐश्वर्य्यप्रदस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) सर्वोत्कर्षाय ॥८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यतस्त्वं मखस्य शिरोऽसि तस्मान्मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा। यतस्त्वं मखस्य शिरोऽसि तस्मान्मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा। यतस्त्वं मखस्य शिरोऽसि तस्मान्मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा। तस्मान्मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा वयं सेवेमहि ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - ये सत्क्रियायामुत्तमाः सन्ति तेऽन्यानपि सत्कारिणो निर्माय मस्तकवदुत्तमाङ्गा भवेयुः ॥१८ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक सर्वांविषयी आदराची भावना बाळगतात ते दुसऱ्यांनाही आदर देण्यायोग्य बनवितात. ते मस्तकाप्रमाणे (महत्त्वाचे) असतात.