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हृ॒दे त्वा॒ मन॑से त्वा दि॒वे त्वा॒ सूर्य्या॑य त्वा। ऊ॒र्ध्वोऽअ॑ध्व॒रं दि॒वि दे॒वेषु॑ धेहि ॥१९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

हृ॒दे। त्वा॒। मन॑से। त्वा॒। दि॒वे। त्वा॒। सूर्य्या॑य। त्वा॒। ऊ॒र्ध्वः। अ॒ध्व॒रम्। दि॒वि। दे॒वेषु॑। धे॒हि॒ ॥१९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:37» मन्त्र:19


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! जिस (हृदे) हृदय की चेतनता के लिये (त्वा) आपको (मनसे) विज्ञानवान् अन्तःकरण होने के अर्थ (त्वा) आपको (दिवे) विद्या के प्रकाश वा विद्युत् विद्या की प्राप्ति के लिये (त्वा) आपको (सूर्य्याय) सूर्यादि लोकों के ज्ञानार्थ (त्वा) आपका हम लोग ध्यान करें सो (ऊर्ध्वः) सबके उत्कृष्ट आप (दिवि) उत्तम व्यवहार और (देवेषु) विद्वानों में (अध्वरम्) अहिंसामय यज्ञ का (धेहि) प्रचार कीजिये ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सत्यभाव से आत्मा और अन्तःकरण की शुद्धि के लिये और सृष्टिविद्या के अर्थ ईश्वर की उपासना करते हैं, उनका वह कृपालु ईश्वर विद्या और धर्म के दान से सब दुःखों से उद्धार करता है ॥१९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(हृदे) हृदयस्य चेतनत्वाय (त्वा) त्वाम् (मनसे) विज्ञानवतेऽन्तःकरणाय (त्वा) (दिवे) विद्याप्रकाशाय विद्युद्विद्यायै वा (त्वा) (सूर्य्याय) सूर्य्यादिलोकविज्ञानाय (त्वा) (ऊर्ध्वः) सर्वेभ्य उत्कृष्टः (अध्वरम्) अहिंसामयं यज्ञम् (दिवि) दिव्ये व्यवहारे (देवेषु) विद्वत्सु (धेहि) प्रचारय ॥१९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! यं हृदे त्वा मनसे त्वा दिवे त्वा सूर्य्याय त्वा ध्यायेम, स ऊर्ध्वस्त्वं दिवि देवेषु चाध्वरं धेहि ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सत्यभावेनात्मान्तःकरणशुद्धये सृष्टिविद्यायै चेश्वरमुपासते, तान् स कृपालुरीश्वरो विद्याधर्मदानेन सर्वेभ्यो दुःखेभ्य उद्धरति ॥१९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे सृष्टिविद्या जाणण्यासाठी व सत्याने आत्मा व अंतःकरण शुद्ध व्हावे यासाठी ईश्वराची उपासना करतात. तेव्हा दयाळू ईश्वर, विद्या व धर्माचे दान देऊन त्यांच्यावर कृपा करतो व त्यांना दुःखातून सोडवितो.