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सम॒ग्निर॒ग्निना॑ गत॒ सं दैवे॑न सवि॒त्रा सꣳ सूर्य्ये॑णारोचिष्ट। स्वाहा॒ सम॒ग्निस्तप॑सा गत॒ सं दैव्ये॑न सवि॒त्रा सꣳसूर्य्ये॑णारूरुचत ॥१५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम्। अ॒ग्निः। अ॒ग्निना॑। ग॒त॒। सम्। दैवे॑न। स॒वि॒त्रा। सम्। सूर्य्ये॑ण। अ॒रो॒चि॒ष्ट॒ ॥ स्वाहा॑। सम्। अ॒ग्निः। तप॑सा। ग॒त॒। सम्। दैव्ये॑न। स॒वि॒त्रा। सम्। सूर्य्ये॑ण। अ॒रू॒रु॒च॒त॒ ॥१५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:37» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अग्निना) स्वयंप्रकाशक जगदीश्वर से (अग्निः) प्रकाशक अग्नि (दैवेन) ईश्वर ने बनाये (सवित्रा) प्रेरक (सूर्येण) सूर्य्य के साथ (सम्) (अरोचिष्ट) सम्यक् प्रकाशित होता है, उस परमात्मा को तुम लोग (स्वाहा) सत्य क्रिया से (सम्, गत) सम्यक् जानो और जो (अग्निः) प्रकाशक ईश्वर (दैव्येन) पृथिवी आदि में हुए (सवित्रा) ऐश्वर्य का कारक (सूर्य्येण) प्रेरक (तपसा) धर्मानुष्ठान से (सम्, अरूरुचत) सम्यक् प्रकाशित होता है, उसको तुम लोग (सम्, गत) सम्यक् प्राप्त होओ ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अग्नि, उत्पादक के उत्पादक, सूर्य्य के सूर्य्य परमात्मा को विशेष कर जानें, उनके लिये इस लोक और परलोक के सुख सम्यक् प्राप्त होते हैं ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(सम्) सम्यक् (अग्निः) प्रकाशकः (अग्निना) स्वयंप्रकाशेन जगदीश्वरेण (गत) विजानीत (सम्) (दैवेन) देवेन निर्मितेन (सवित्रा) प्रेरकेण (सम्) (सूर्येण) (अरोचिष्ट) प्रकाशते (स्वाहा) सत्यया क्रियया (सम्) (अग्निः) (तपसा) धर्मानुष्ठानेन (गत) (सम्) (दैव्येन) देवेषु पृथिव्यादिषु भवेन (सवित्रा) ऐश्वर्यकारकेण (सम्) (सूर्येण) प्रेरकेण (अरूरुचत) सम्यक् प्रकाशते ॥१५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! योऽग्निनाऽग्निर्दैवेन सवित्रा सूर्येण सह समरोचिष्ट, तं परमात्मानं यूयं स्वाहा सङ्गत। योऽग्निर्दैव्येन सवित्रा सूर्य्येण तपसा समरूरुचत तं यूयं सङ्गत ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या अग्नेरग्निं सवितुः सवितारं सूर्य्यस्य सूर्य्यं परमात्मानं विजानीयुस्तेभ्योऽभ्युदयनिःश्रेयसे सुखे सम्यक् प्राप्नुतः ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अग्नीचा उत्पादक सूर्य असून, त्या सूर्याचा उत्पन्नकर्ताही परमेश्वर आहे. माणसांनी त्याला विशेषत्वाने जाणावे म्हणजे त्यांना इहलोक व परलोकाचे सम्यक सुख प्राप्त होईल.