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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृषन्) सब ओर से सुखों को वर्षानेवाले ईश्वर (त्वम्) आप (कया) किस (ऊत्या) रक्षण आदि क्रिया से (नः) हमको (अभि, प्र, मन्दसे) सब ओर से आनन्दित करते और (कया) किस रीति से (स्तोतृभ्यः) आपकी प्रशंसा करनेवाले मनुष्यों के लिये सुख को (आ, भर) अच्छे प्रकार धारण कीजिये ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - हे भगवन् परमात्मन् ! जिस युक्ति से आप धर्मात्माओं को आनन्दित करते, उनकी सब ओर से रक्षा करते हैं, उस युक्ति को हमको जताइये ॥७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(कया) (त्वम्) (नः) अस्मान् (ऊत्या) रक्षणाद्यया क्रियया (अभि) (प्र) (मन्दसे) सर्वत्र आनन्दयसि (वृषन्) सुखाभिवर्षक (कया) रीत्या (स्तोतृभ्यः) प्रशंसकेभ्यो मनुष्येभ्यः (आ) (भर) ॥७ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे वृषन्नीश्वर ! त्वं कयोत्या नोऽभिप्रमन्दसे, कया स्तोतृभ्यः सुखमाभर ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - हे भगवन् परमात्मन् ! यया युक्त्या त्वं धार्मिकानानन्दयसि, तान् सर्वतः पालयसि, तां युक्तिमस्मान् बोधय ॥७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे परमेश्वरा ! ज्या रीतीने (युक्तीने) तू धर्मात्म्यांना आनंदी करतोस व त्यांचे सगळ्या प्रकारे रक्षण करतोस ती रीत (युक्ती) आम्हालाही कळू दे.