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कया॑ नश्चि॒त्रऽ आ भु॑वदू॒ती स॒दावृ॑धः॒ सखा॑। कया॒ शचि॑ष्ठया वृ॒ता ॥४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कया॑। नः॒। चि॒त्रः। आ। भु॒व॒त्। ऊ॒ती। स॒दावृ॑ध॒ इति॑ स॒दाऽवृ॑धः। सखा॑ ॥ कया॑। शचि॑ष्ठया। वृ॒ता ॥४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:36» मन्त्र:4


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - वह (सदावृधः) सदा बढ़नेवाला अर्थात् कभी न्यूनता को नहीं प्राप्त हो (चित्रः) आश्चर्य्यरूप गुणकर्मस्वभावों से युक्त परमेश्वर (नः) हम लोगों का (कया) किस (ऊती) रक्षण आदि क्रिया से (सखा) मित्र (आ, भुवत्) होवे तथा (कया) किस (वृता) वर्त्तमान (शचिष्ठया) अत्यन्त उत्तम बुद्धि से हमको शुभ गुणकर्मस्वभावों में प्रेरणा करे ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - हम लोग इस बात को यथार्थ प्रकार से नहीं जानते कि वह ईश्वर किस युक्ति से हमको प्रेरणा करता है कि जिसके सहाय से ही हम लोग धर्म, अर्थ, काम और मोक्षों के सिद्ध करने को समर्थ हो सकते हैं ॥४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(कया) (नः) अस्माकम् (चित्रः) अद्भुतगुणकर्मस्वभावः परमेश्वरः (आ) समन्तात् (भुवत्) भवेत् (ऊती) रक्षणादिक्रियया। तृतीयैकवचनस्य सुपां सुलुग् [अ꠶७.१.३९] इति पूर्वसवर्णः। (सदावृधः) वर्द्धमानः (सखा) सुहृत् (कया) (शचिष्ठया) अतिशयेन शची प्रज्ञा तया (वृता) वर्त्तमानया ॥४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - स सदावृधश्चित्रो नः कयोती सखा आभुवत्, कया वृता शचिष्ठयाऽस्मान् शुभेषु गुणकर्मस्वभावेषु प्रेरयेत् ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - वयमिदं यथार्थतया न विजानीमः स ईश्वरः कया युक्तयाऽस्मान् प्रेरयति, यस्य सहायेनैव वयं धर्मार्थकाममोक्षान् साद्धुं शक्नुमः ॥४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याच्या साह्याने आपण धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सिद्ध करण्यास समर्थ होऊ शकतो तो ईश्वर कोणत्या युक्तीने आपल्याला प्रेरणा देतो हे आपण यथार्थपणे जाणत नाही.