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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्य क्या करें इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (दृते) समग्र मोह के आवरण का नाश करनेहारे उपदेशक विद्वन् वा परमेश्वर ! जिसमें (ते) आपके (संदृशि) सम्यक् देखने वा ज्ञान में (ज्योक्) निरन्तर (जीव्यासम्) जीवें (ते) आपके (संदृशि) समान दृष्टि विषय में (ज्योक्) निरन्तर (जीव्यासम्) जीवन व्यतीत करें, उस जीवन विषय में (मा) मुझको (दृंह) दृढ़ कीजिये ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि ईश्वर की आज्ञा पालने और युक्त आहार-विहार से सौ वर्ष तक जीवन का उपाय करें ॥१९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥
अन्वय:
(दृते) सकलमोहाऽऽवरणविच्छेदकोपदेशक वा परमात्मन् ! (दृंह) (मा) माम् (ज्योक्) निरन्तरम् (ते) तव (संदृशि) सम्यग् दर्शने (जीव्यासम्) (ज्योक्) निरन्तरम् (ते) तव (संदृशि) समानदर्शने विषये (जीव्यासम्) ॥१९ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे दृते ! येनाऽहन्ते संदृशि ज्योक् जीव्यासं ते संदृशि ज्योग्जीव्यासं तत्र मा दृंह ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरीश्वराज्ञापालनेन युक्ताहारविहारैश्च शतं वर्षाणि जीवनीयम् ॥१९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी ईश्वराची आज्ञा पाळून युक्त आहार-विहार करून शंभर वर्षांपर्यंत जगण्याचे उपाय योजावेत.