वांछित मन्त्र चुनें

द्यौः शान्ति॑र॒न्तरि॑क्ष॒ꣳ शान्तिः॑ पृथि॒वी शान्ति॒रापः॒ शान्ति॒रोषध॑यः॒ शान्तिः॑। वन॒स्पत॑यः॒ शान्ति॒र्विश्वे॑ दे॒वाः शान्ति॒र्ब्रह्म॒ शान्तिः॒ सर्व॒ꣳ शान्तिः॒ शान्ति॑रे॒व शान्तिः॒ सा मा॒ शान्ति॑रेधि ॥१७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

द्यौः। शान्तिः॑। अ॒न्तरि॑क्षम्। शान्तिः॑। पृ॒थि॒वी। शान्तिः॑। आपः॑। शान्तिः॑। ओष॑धयः। शान्तिः॑ ॥ वन॒स्पत॑यः। शान्तिः॑। विश्वे॑। दे॒वाः। शान्तिः॑। ब्रह्म॑। शान्तिः॑। सर्व॑म्। शान्तिः॑। शान्तिः॑। ए॒व। शान्तिः॑। सा। मा॒। शान्तिः॑। ए॒धि॒ ॥१७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:36» मन्त्र:17


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को कैसे प्रयत्न करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (द्यौः, शान्तिः) प्रकाशयुक्त पदार्थ शान्तिकारक (अन्तरिक्षम्) दोनों लोक के बीच का आकाश (शान्तिः) शान्तिकारी (पृथिवी) भूमि (शान्तिः) सुखकारी निरुपद्रव (आपः) जल वा प्राण (शान्तिः) शान्तिदायी (ओषधयः) सोमलता आदि ओषधियाँ (शान्तिः) सुखदायी (वनस्पतयः) वट आदि वनस्पति (शान्तिः) शान्तिकारक (विश्वे, देवाः) सब विद्वान् लोग (शान्तिः) उपद्रवनिवारक (ब्रह्म) परमेश्वर वा वेद (शान्तिः) सुखदायी (सर्वम्) सम्पूर्ण वस्तु (शान्तिः) शान्तिकारक (शान्तिरेव) शान्ति ही (शान्तिः) शान्ति (मा) मुझको (एधि) प्राप्त होवे (सा) वह (शान्तिः) शान्ति तुम लोगों के लिये भी प्राप्त होवे ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे प्रकाश आदि पदार्थ शान्ति करनेवाले होवें, वैसे तुम लोग प्रयत्न करो ॥१७ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः कथं प्रयतितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(द्यौः) प्रकाशयुक्तः पदार्थः (शान्तिः) शान्तिकरः (अन्तरिक्षम्) उभयलोकयोर्मध्यस्थमाकाशम् (शान्तिः) (पृथिवी) भूमिः (शान्तिः) (आपः) जलानि प्राणा वा (शान्तिः) (ओषधयः) सोमाद्याः (शान्तिः) (वनस्पतयः) वटादयः (शान्तिः) (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः (शान्तिः) (ब्रह्म) परमेश्वरो वेदो वा (शान्तिः) (सर्वम्) अखिलं वस्तु (शान्तिः) (शान्तिः) (एव) (शान्तिः) (सा) (मा) माम् (शान्तिः) (एधि) भवतु ॥१७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! या द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिर्वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिर्मैधि सा शान्तिर्युष्माकमपि प्राप्नोतु ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा प्रकाशादयः पदार्थाः शान्तिकराः स्युस्तथा यूयं प्रयतध्वम् ॥१७ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जसे प्रकाशयुक्त पदार्थ, आकाश, भूमी, जल, सोमलता इत्यादी औषधे, वनस्पती, विद्वान लोक, परमेश्वर, वेद इत्यादी शांती देणारे असतात तशी शांती प्राप्त करण्याचा प्रयत्न तुम्हीही करा.