द्यौः शान्ति॑र॒न्तरि॑क्ष॒ꣳ शान्तिः॑ पृथि॒वी शान्ति॒रापः॒ शान्ति॒रोषध॑यः॒ शान्तिः॑। वन॒स्पत॑यः॒ शान्ति॒र्विश्वे॑ दे॒वाः शान्ति॒र्ब्रह्म॒ शान्तिः॒ सर्व॒ꣳ शान्तिः॒ शान्ति॑रे॒व शान्तिः॒ सा मा॒ शान्ति॑रेधि ॥१७ ॥
द्यौः। शान्तिः॑। अ॒न्तरि॑क्षम्। शान्तिः॑। पृ॒थि॒वी। शान्तिः॑। आपः॑। शान्तिः॑। ओष॑धयः। शान्तिः॑ ॥ वन॒स्पत॑यः। शान्तिः॑। विश्वे॑। दे॒वाः। शान्तिः॑। ब्रह्म॑। शान्तिः॑। सर्व॑म्। शान्तिः॑। शान्तिः॑। ए॒व। शान्तिः॑। सा। मा॒। शान्तिः॑। ए॒धि॒ ॥१७ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों को कैसे प्रयत्न करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्यैः कथं प्रयतितव्यमित्याह ॥
(द्यौः) प्रकाशयुक्तः पदार्थः (शान्तिः) शान्तिकरः (अन्तरिक्षम्) उभयलोकयोर्मध्यस्थमाकाशम् (शान्तिः) (पृथिवी) भूमिः (शान्तिः) (आपः) जलानि प्राणा वा (शान्तिः) (ओषधयः) सोमाद्याः (शान्तिः) (वनस्पतयः) वटादयः (शान्तिः) (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः (शान्तिः) (ब्रह्म) परमेश्वरो वेदो वा (शान्तिः) (सर्वम्) अखिलं वस्तु (शान्तिः) (शान्तिः) (एव) (शान्तिः) (सा) (मा) माम् (शान्तिः) (एधि) भवतु ॥१७ ॥