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तस्मा॒ऽ अरं॑ गमाम वो॒ यस्य॒ क्षया॑य॒ जिन्व॑थ। आपो॑ ज॒नय॑था च नः ॥१६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तस्मै॑। अर॑म्। ग॒मा॒म॒। वः॒। यस्य॑। क्षया॑य। जिन्व॑थ ॥ आपः॑। ज॒नय॑थ। च॒। नः॒ ॥१६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:36» मन्त्र:16


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रियो ! जैसे तुम लोग (नः) हमको (आपः) जलों के तुल्य शान्त (जनयथ) प्रकट करो, वैसे (वः) तुमको हम लोग शान्त प्रकट करें (च) और तुम लोग (यस्य) जिस पति के (क्षयाय) निवास के लिये (जिन्वथ) उसको तृप्त करो (तस्मै) उस के लिये हम लोग (अरम्) पूर्ण सामर्थ्ययुक्त (गमाम) प्राप्त होवें ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। स्त्री-पुरुषों को योग्य है कि परस्पर आनन्द के लिये जल के तुल्य सरलता से वर्तें और शुभ आचरणों के साथ परस्पर सुशोभित ही रहें ॥१६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(तस्मै) (अरम्) अलम् (गमाम) प्राप्नुयाम (वः) युष्मान् (यस्य) (क्षयाय) निवासाय (जिन्वथ) प्रीणयथ (आपः) जलानीव (जनयथ) अत्र संहितायाम् [अ०६.३.११४] इति दीर्घः। (च) (नः) अस्मान् ॥१६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रियो ! यथा यूयं नोऽस्मानाप इव शान्ताञ्जनयथ, तथा वो युष्मान् च शान्ता वयं जनयेम यूयं यस्य क्षयाय जिन्वथ तस्मै वयमरंगमाम ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। स्त्रीपुरुषैः परस्परस्याऽऽनन्दाय जलवत्सरलतया वर्त्तितव्यं शुभाचरणैः परस्परमलंकृतैरेव भवितव्यम् ॥१६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. स्री-पुरुषांनी परस्पर आनंदासाठी जलाप्रमाणे शांत राहावे व चांगल्या वर्तनाने परस्पर शोभून दिसावे.