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आपो॒ हि ष्ठा म॑यो॒भुव॒स्ता न॑ऽ ऊ॒र्जे द॑धातन। म॒हे रणा॑य॒ चक्ष॑से ॥१४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आपः॑। हि। स्थ। म॒यो॒भुव॒ इति॑ मयः॒ऽभुवः॑। ताः। नः॒। ऊ॒र्जे। द॒धा॒त॒न॒ ॥ म॒हे। रणा॑य। चक्ष॑से ॥१४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:36» मन्त्र:14


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (आपः) जलों के तुल्य शान्तिशील विदुषी श्रेष्ठ स्त्रियो ! जैसे (मयोभुवः) सुख उत्पन्न करनेहारे जल (हि) जिस कारण (नः) हमको (महे) बड़े (रणाय, चक्षसे) प्रसिद्ध संग्राम के लिये वा (ऊर्जे) बल-पराक्रम के अर्थ धारण वा पोषण करें, वैसे इनको तुम लोग (दधातन) धारण करो और प्यारी (स्थ) होओ ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे श्रेष्ठ पतिव्रता स्त्रियाँ सब ओर से सबको सुखी करतीं, वैसे जलादि पदार्थ सबको सुखकारी होते हैं, ऐसा जानो ॥१४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(आपः) जलानीव शान्तिशीला विदुष्यः सत्स्त्रियः (हि) यतः (स्थ) भवत। संहितायाम् [अ꠶६.३.११४] इति दीर्घः। (मयोभुवः) या मयः सुखं भावयन्ति ताः। मय इति सुखनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.६) (ताः) (नः) अस्मान् (ऊर्जे) पराक्रमाय बलाय वा (दधातन) धरत (महे) महते (रणाय) सङ्ग्रामाय। रण इति सङ्ग्रामनामसु पठितम् ॥ (निघं०२.१७) (चक्षसे) प्रसिद्धाय ॥१४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे आपः ! स्त्रियो यथा मयोभुव आपो हि नो महे रणाय चक्षस ऊर्जे दधतु तथैता यूयं दधातन प्रियाः स्थः ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सत्यः पतिव्रताः स्त्रियः सर्वान् सुखयन्ति, तथैव जलादयः पदार्थाः सुखकराः सन्तीति वेद्यम् ॥१४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशा श्रेष्ठ पतिव्रता स्रिया सर्वप्रकारे सर्वांना सुखी करतात तसे जल वगैरे पदार्थ सर्वांना सुखकारी असतात हे जाणा.