बार पढ़ा गया
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पतिव्रता स्त्री कैसी हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे पृथिवी के तुल्य वर्त्तमान क्षमाशील स्त्रि ! जैसे (अनृक्षरा) काँटे, गड्ढे आदि से रहित (निवेशनी) नित्य स्थिर पदार्थों की स्थापना करनेहारी (पृथिवि) भूमि (नः) हमारे लिये होती है, वैसे तू (भव) हो, वह पृथिवी (सप्रथाः) विस्तार के साथ वर्त्तमान (नः) हमारे लिये (शर्म) स्थान देवे, वैसे (स्योना) सुख करनेहारी तू (नः) हमारे लिये घर के सुख को (यच्छ) दे ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोमालङ्कार है। जैसे सब प्राणियों को सुख ऐश्वर्य देनेवाली पृथिवी वर्त्तमान है, वैसे ही विदुषी पतिव्रता स्त्री पति आदि को आनन्द देनेवाली होती है ॥१३ ॥
बार पढ़ा गया
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पतिव्रता कीदृशी स्यादित्याह ॥
अन्वय:
(स्योना) सुखकारी (पृथिवि) भूमिः (नः) अस्मभ्यम् (भव) भवतु। अत्र पुरुषव्यत्ययः। (अनृक्षरा) कण्टकगर्त्तादिरहिता (निवेशनी) या नित्यान् निवेशयति सा (यच्छ) ददातु (नः) अस्मभ्यम् (शर्म) गृहम् (सप्रथाः) विस्तारेण सह वर्त्तमाना ॥१३ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे पृथिवीव वर्त्तमाने स्त्रि ! यथाऽनृक्षरा पृथिवि नो भवति, तथा त्वं भव, सा सप्रथा नः शर्म यच्छेत्, तथा स्योना त्वं नः शर्म्म यच्छ ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सर्वेषां भूतानां सुखैश्वर्य्यप्रदा पृथिवी वर्त्तते, तथैव विदुषी स्त्री पत्यादीनामानन्दप्रदा भवति ॥१३ ॥
बार पढ़ा गया
मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. पृथ्वी जशी सर्व प्राण्यांना सुख ऐश्वर्य देणारी असते तशीच विदुषी पतिव्रता स्री-पती वगैरेना आनंद देते.