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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
ईश्वर की उपासना का विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे जीव ! जो (असौ) यह लोक (नः) हमारे (अघम्) पाप को (अप, शोशुचत्) शीघ्र सुखा देवे, उस (प्रजापतौ) प्रजा के रक्षक (देवतायाम्) पूजनीय परमेश्वर में तथा (उपोदके) उपगत समीपस्थ उदक जिसमें हों (लोके) दर्शनीय स्थान में (त्वा) आप को (नि दधामि) निरन्तर धारण करता हूँ ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो जगदीश्वर उपासना किया हुआ पापाचरण से पृथक् कराता है, उसी में भक्ति करने के लिये तुमको मैं स्थिर करता हूँ, जिससे सदैव तुम लोग श्रेष्ठ सुख के देखने को प्राप्त होओ ॥६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
ईश्वरोपासनाविषयमाह ॥
अन्वय:
(प्रजापतौ) प्रजायाः पालके परमेश्वरे (त्वा) त्वाम् (देवतायाम्) पूजनीयायाम् (उपोदके) उपगतान्युदकानि यस्मिंस्तस्मिन् (लोके) दर्शनीये (नि) (दधामि) (असौ) (अप) (नः) अस्माकम् (शोशुचत्) भृशं शोषयतु (अघम्) पापम् ॥६ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे जीव ! योऽसौ नोऽघमपशोशुचत् तस्यां प्रजापतौ देवतायामुपोदके लोके च त्वा नि दधामि ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यो जगदीश्वर उपासितः सन् पापाचरणात् पृथक् कारयति, तस्मिन्नेव भक्तिकरणाय युष्मानहं स्थिरीकरोमि, येन सदैव यूयं श्रेष्ठं सुखदर्शनं प्राप्नुयात ॥६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! उपासनीय परमेश्वर पापाचरणापासून पृथक करतो, त्याची भक्ती करण्यासाठी मी तुम्हाला स्थिर करतो. ज्यामुळे तुम्ही लोक सदैव श्रेष्ठ सुख भोगू शकाल.