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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
कन्या क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (पृथिवि) भूमि के तुल्य सहनशील कन्या ! तू जिस (ते) तेरे (शरीराणि) आश्रयों को (मातुः) माता के तुल्य मान्य देनेवाली पृथिवी के (उपस्थे) समीप में (सविता) उत्पत्ति करनेवाला पिता (आ, वपतु) स्थापित करे, सो तू (तस्मै) उस पिता के लिये (शम्) सुखकारिणी (भव) हो ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - हे कन्याओ ! तुमको उचित है कि विवाह के पश्चात् भी माता और पिता में प्रीति न छोड़ो, क्योंकि उन्हीं दोनों से तुम्हारे शरीर उत्पन्न हुए और पाले गये हैं इससे ॥५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
कन्या किं कुर्यादित्याह ॥
अन्वय:
(सविता) उत्पत्तिकर्त्ता पिता (ते) तव (शरीराणि) आश्रयान् (मातुः) जननीवन्मान्यप्रदायाः पृथिव्याः (उपस्थे) समीपे (आ) (वपतु) स्थापयतु (तस्मै) (पृथिवि) भूमिवद्वर्त्तमाने कन्ये (शम्) सुखकारिणी (भव) ॥५ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे पृथिवि ! त्वं यस्यास्ते शरीराणि मातुरुपस्थे सविता आ वपतु, सा त्वं तस्मै पित्रे शम्भव ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - हे कन्ये ! युष्माभिर्विवाहानन्तरमपि जनकस्य जनन्याश्च मध्ये प्रीतिर्नैव त्याज्या, कुतस्ताभ्यामेव युष्माकं शरीराणि निर्मितानि पालितानि च सन्त्यतः ॥५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे मुलांनो ! विवाहानंतरही माता व पिता यांच्यावरील प्रेम कमी करू नका. कारण त्या दोघांकडून तुमची शरीरे उत्पन्न झालेली आहेत व पोषणही झालेले आहे.