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अ॒श्व॒त्थे वो॑ नि॒षद॑नं प॒र्णे वो॑ वस॒तिष्कृ॒ता। गो॒भाज॒ऽइत्किला॑सथ॒ यत्स॒नव॑थ॒ पू॑रुषम् ॥४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒श्व॒त्थे। वः॒। नि॒षद॑नम्। नि॒सद॑न॒मिति॑ नि॒ऽसद॑नम्। प॒र्णे। वः॒। व॒स॒तिः। कृ॒ता ॥ गो॒भाज॒ इति॑ गो॒ऽभाजः॑। इ॒त्। किल॑। अ॒स॒थ॒। यत्। स॒नव॑थ। पूरु॑षम्। पुरु॑ष॒मिति॒ पुरु॑षम् ॥४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:35» मन्त्र:4


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जीवो ! जिस जगदीश्वर ने (अश्वत्थे) कल ठहरेगा वा नहीं ऐसे अनित्य संसार में (वः) तुम लोगों की (निषदनम्) स्थिति की (पर्णे) पत्ते के तुल्य चञ्चल जीवन में (वः) तुम्हारा (वसतिः) निवास (कृता) किया। (यत्) जिस (पूरुषम्) सर्वत्र परिपूर्ण परमात्मा को (किल) ही (सनवथ) सेवन करो, उसके साथ (गोभाजः) पृथिवी, वाणी, इन्द्रिय वा किरणों का सेवन करनेवाले (इत्) ही तुम लोग प्रयत्न के साथ धर्म में स्थिर (असथ) होओ ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि अनित्य संसार में अनित्य शरीरों और पदार्थों को प्राप्त हो के क्षणभङ्गुर जीवन में धर्माचरण के साथ नित्य परमात्मा की उपासना कर आत्मा और परमात्मा के संयोग से उत्पन्न हुए नित्य सुख को प्राप्त हों ॥४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(अश्वत्थे) श्वः स्थास्यति न स्थास्यति वा तस्मिन्ननित्ये संसारे (वः) युष्माकम् (निषदनम्) स्थापनम् (पर्णे) पर्णवच्चञ्चले जीवने (वः) युष्माकम् (वसतिः) निवसतिः (कृता) (गोभाजः) ये गाः पृथिवीं वाचमिन्द्रियाणि किरणान् वा भजन्ति ते (इत्) एव (किल) (असथ) भवथ (यत्) (सनवथ) सेवध्वम् (पूरुषम्) सर्वत्र पूर्णं परमात्मानम् ॥४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जीवा ! येन जगदीश्वरेणाश्वत्थे वो निषदनं कृतं पर्णे वो वसतिः कृता। यत्पूरुषं किल सनवथ तेन सह गोभाज इद्यूयं प्रयत्नेन धर्मेऽसथ ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरनित्ये संसारेऽनित्यानि शरीराणि पदार्थांश्च प्राप्य क्षणभङ्गुरे जीवने धर्माचरणेन नित्यं परमात्मानमुपास्याऽऽत्मपरमात्मसंयोगजं नित्यं सुखं प्रापणीयम् ॥४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी अनित्य संसारात शरीर व पदार्थ प्राप्त झाल्यानंतर धर्माचरणाने या क्षणभंगूर जीवनात नित्य परमेश्वराची उपासना करावी व आत्मा आणि परमात्मा यांच्या संयोगाने उत्पन्न झालेले नित्य सुख भोगावे.