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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
जीवों की कर्मगति का विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम (वायुः) पवन (अग्नेः) बिजुली की (भ्राजसा) दीप्ति से (सूर्यस्य) सूर्य के (वर्चसा) तेज से जिन हम लोगों को (पुनातु) पवित्र करे (सविता) सूर्य (पुनातु) पवित्र करे (उस्रियाः) किरण (विमुच्यन्ताम्) छोड़ें ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - जब जीव शरीरों को छोड़ के विद्युत्, सूर्य के प्रकाश और वायु आदि को प्राप्त होकर जाते हैं और गर्भ में प्रवेश करते हैं, तब किरण उनको छोड़ देती हैं ॥३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
जीवानां कर्मगतिविषयमाह ॥
अन्वय:
(वायुः) (पुनातु) पवित्रयतु (सविता) सूर्यः (पुनातु) (अग्नेः) विद्युतः (भ्राजसा) दीप्त्या (सूर्यस्य) (वर्चसा) प्रकाशेन (वि) (मुच्यन्ताम्) त्यज्यन्ताम् (उस्रियाः) किरणाः ॥३ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! वायुरग्नेर्भ्राजसा सूर्यस्य वर्चसा यानस्मान् पुनातु सविता पुनातु उस्रिया विमुच्यन्ताम् ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - यदा जीवाः शरीराणि त्यक्त्वा विद्युतं सूर्यप्रकाशं वाय्वादीनि च प्राप्य गच्छन्ति, गर्भं प्रविशन्ति, तदा किरणास्तान् त्यजन्ति ॥३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा जीव शरीरांना सोडून विद्युत, सूर्याचा प्रकाश व वायू इत्यादीमध्ये राहतात व गर्भात प्रवेश करतात तेव्हा (प्रकाश) किरणे त्यांना सोडून जातात.