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अ॒स्मात्त्वमधि॑ जा॒तो᳖ऽसि॒ त्वद॒यं जा॑यतां॒ पुनः॑। अ॒सौ स्व॒र्गाय॑ लो॒काय॒ स्वाहा॑ ॥२२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒स्मात्। त्वम्। अधि॑। जा॒तः। अ॒सि॒। त्वत्। अ॒यम्। जा॒य॒ता॒म्। पुन॒रिति॒ पुनः॑ ॥ अ॒सौ। स्वर्गायेति॑ स्वः॒ऽगाय॑। लो॒काय॑। स्वाहा॑ ॥२२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:35» मन्त्र:22


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् पुरुष (त्वम्) आप (अस्मात्) इस लोक से अर्थात् वर्त्तमान मनुष्यों से (अधि) सर्वोपरि (जातः) प्रसिद्ध विराजमान (असि) हैं, इससे (अयम्) यह पुत्र (त्वत्) आपसे (पुनः) पीछे (असौ) विशेष नामवाला (स्वाहा) सत्य क्रिया से (लोकाय) देखने योग्य (स्वर्गाय) विशेष सुख भोगने के लिये (जायताम्) प्रकट समर्थ होवे ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोगों को चाहिये कि इस जगत् में मनुष्यों का शरीर धारण कर विद्या, उत्तम शिक्षा, अच्छा स्वभाव, धर्म, योगाभ्यास और विज्ञान का सम्यक् ग्रहण करके मुक्ति सुख के लिये प्रयत्न करो और यही मनुष्यजन्म की सफलता है, ऐसा जानो ॥२२ ॥ इस अध्याय में व्यवहार, जीव की गति, जन्म, मरण, सत्य, आशीर्वाद, अग्नि और सत्य इच्छा आदि का व्याख्यान होने से इस अध्याय में कहे अर्थ की पूर्व अध्याय में कहे अर्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्याणां श्रीमन्महाविदुषां विरजानन्दसरस्वतीस्वामिनां शिष्येण श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्येण श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिना विरचिते संस्कृतार्य्यभाषाभ्यां समन्विते सुप्रमाणयुक्ते यजुर्वेदभाष्ये पञ्चत्रिंशोऽध्यायोऽलमगमत् ॥३५॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(अस्मात्) लोकात् (त्वम्) (अधि) उपरिभावे (जातः) (असि) भवति (त्वत्) तव सकाशादुत्पन्नः (अयम्) पुत्रः (जायताम्) उत्पद्यताम् (पुनः) पश्चात् (असौ) विशेषनामा (स्वर्गाय) विशेषसुखभोगाय (लोकाय) द्रष्टव्याय (स्वाहा) सत्यया क्रियया ॥२२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यतस्त्वमस्माल्लोकादधिजातोऽसि, तस्मादयं त्वत्पुनरसौ स्वाहा स्वर्गाय लोकाय जायताम् ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! युष्माभिरिह मनुष्यशरीरं धृत्वा विद्यासुशिक्षासुशीलधर्मयोगविज्ञानानि सङ्गृह्य मुक्तिसुखाय प्रयतितव्यमिदमेव मनुष्यजन्मसाफल्यं वेद्यमिति ॥२२ ॥ अस्मिन्नध्याये व्यवहारजीवगतिजन्ममृत्युसत्याऽऽशीरग्निसत्येच्छानां व्याख्यानादेतदध्यायोक्तार्थस्य पूर्वाध्यायोक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! या जगात मानव शरीर धारण करून विद्या, उत्तम शिक्षण, चांगला स्वभाव, धर्म, योगाभ्यास, विज्ञानाचे ग्रहण करून मुक्ती सुखासाठी प्रयत्न करा. तीच मनुष्य जन्माची सार्थकता आहे, हे जाणा.