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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर ईश्वर के कर्त्तव्य विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे जीव ! (सविता) परमात्मा जिस (ते) तेरे (शरीरेभ्यः) जन्म-जन्मान्तरों के शरीरों के लिये (पृथिव्याम्) अन्तरिक्ष वा भूमि में (लोकम्) कर्मों के अनुकूल सुख-दुःख के साधन प्रापक स्थान को (इच्छतु) चाहे (तस्मै) उस तेरे लिये (उस्रियाः) प्रकाशरूप किरण (युज्यन्ताम्) अर्थात् उपयोगी हों ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - हे जीवो ! जो जगदीश्वर तुम्हारे लिये सुख चाहता है और किरणों के द्वारा लोक-लोकान्तर को पहुँचाता है, वही तुम लोगों को न्यायकारी मानना चाहिये ॥२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनरीश्वरकर्त्तव्यविषयमाह ॥
अन्वय:
(सविता) परमात्मा (ते) तव (शरीरेभ्यः) देहेभ्यः (पृथिव्याम्) अन्तरिक्षे भूमौ वा (लोकम्) कर्मानुकूलं सुखदुःखप्रापकम् (इच्छतु) (तस्मै) (युज्यन्ताम्) (उस्रियाः) किरणाः। उस्रा इति रश्मिनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.५) ॥२ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे जीव ! सविता यस्य ते शरीरेभ्यः पृथिव्यां लोकमिच्छतु, तस्मै तुभ्यमुस्रिया युज्यन्ताम् ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - हे जीवा ! यो जगदीश्वरो युष्मभ्यं सुखमिच्छति, किरणद्वारा लोकलोकान्तरं प्रापयति, स एव युष्माभिर्न्यायकारी मन्तव्यः ॥२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे जीवांनो ! जो जगदीश्वर तुम्हाला सुख देऊ इच्छितो व किरणांद्वारे लोकलोकांतरी पोहोचवून कर्माप्रमाणे सुख-दुःखकारक साधन देतो. त्यालाच तुम्ही न्यायकारी मानले पाहिजे.