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क्र॒व्याद॑म॒ग्निं प्र हि॑णोमि दू॒रं य॑म॒राज्यं॑ गच्छतु रिप्रवा॒हः। इ॒हैवायमित॑रो जा॒तवे॑दा दे॒वेभ्यो॑ ह॒व्यं व॑हतु प्रजा॒नन् ॥१९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क्र॒व्याद॒मिति॑ क्रव्या॒ऽअद॑म्। अ॒ग्निम्। प्र। हि॒नो॒मि॒। दू॒रम्। यम॒राज्य॒मिति॑ यम॒ऽराज्य॑म्। ग॒च्छ॒तु। रि॒प्र॒वा॒ह इति॑ रिप्रऽवा॒हः ॥ इ॒ह। ए॒व। अ॒यम्। इत॑रः। जा॒तवे॑दा॒ इति॑ जा॒तऽवे॑दाः। दे॒वेभ्यः॑। ह॒व्यम्। व॒ह॒तु॒। प्र॒जा॒नन्निति॑ प्रऽजा॒नन् ॥१९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:35» मन्त्र:19


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रजानन्) अच्छे प्रकार जानता हुआ मैं (क्रव्यादम्) कच्चे मांस को खाने और (अग्निम्) अग्नि के तुल्य दूसरों को दुःख से तपानेवाले जिस दुष्ट को (दूरम्) दूर (प्रहिणोमि) पहुँचाता और जिन (रिप्रवाहः) पाप उठानेवाले दुष्टों को दूर पहुँचाता हूँ, वह और वे सब पापी (यमराज्यम्) न्यायाधीश राजा के न्यायालय में (गच्छतु) जावें और (इह) इस जगत् में (इतरः) दूसरा (अयम्) यह (जातवेदाः) धर्म्मात्मा विद्वान् जन (देवेभ्यः) धार्मिक विद्वानों से (हव्यम्) ग्रहण करने योग्य विज्ञान को (एव) ही (वहतु) प्राप्त होवे ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। न्यायाधीश राजपुरुषो ! तुम लोग दुष्टाचारी जनों को सम्यक् ताड़ना देकर प्राणों से भी छुड़ा के और श्रेष्ठ का सत्कार करके इस सृष्टि में साम्राज्य अर्थात् चक्रवर्ती राज्य करो ॥१९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(क्रव्यादम्) यः क्रव्यं मांसमत्ति तम् (अग्निम्) अग्निमिवाऽन्यान् परितापकम् (प्र) (हिनोमि) गमयामि (दूरम्) (यमराज्यम्) यमस्य न्यायाधीशस्य स्थानम् (गच्छतु) (रिप्रवाहः) ये रिप्रं पापं वहन्ति तान् (इह) अस्मिन् संसारे (एव) (अयम्) (इतरः) भिन्नः (जातवेदाः) जातप्रज्ञानः (देवेभ्यः) धार्मिकेभ्यो विद्वद्भ्यः (हव्यम्) आदातुमर्हं विज्ञानम् (वहतु) प्राप्नोतु (प्रजानन्) प्रकर्षेण जानन् सन् ॥१९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - प्रजानन्नहं क्रव्यादमग्निमिव वर्त्तमानं यं दूरं प्रहिणोमि, याश्च रिप्रवाहश्च दूरं प्रहिणोमि, स यमराज्यं गच्छतु। ते च इहेतरोऽयं जातवेदा देवेभ्यो हव्यमेव वहतु ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे न्यायाधीशाः ! यूयं दुष्टाचारिणः संताड्य प्राणादपि वियोज्य श्रेष्ठान् सत्कृत्येह सृष्टौ साम्राज्यं कुरुत ॥१९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे न्यायाधीश राजपुरुषांनो ! तुम्ही दुष्ट माणसांना ताडना देऊन प्राणसुद्धा हरण करा व श्रेष्ठांचा सत्कार करून या जगात साम्राज्य अर्थात चक्रवर्ती राज्य करा.