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उद्व॒यन्तम॑स॒स्परि॒ स्वः᳕ पश्य॑न्त॒ऽउत्त॑रम्। दे॒वं दे॑व॒त्रा सूर्य्य॒मग॑न्म॒ ज्योति॑रुत्त॒मम् ॥१४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उत्। व॒यम्। तम॑सः। परि॑। स्व᳕रिति॒ स्वः᳕। पश्य॑न्तः। उत्त॑र॒मित्यु॒त्ऽत॑रम् ॥ दे॒वम्। दे॒वत्रेति॑ देव॒ऽत्रा। सूर्य्य॑म्। अग॑न्म। ज्योतिः॑। उ॒त्त॒ममित्यु॑त्ऽत॒मम् ॥१४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:35» मन्त्र:14


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन मोक्ष को पाते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (वयम्) हम लोग जिस (तमसः) अन्धकार से परे (स्वः) स्वयं प्रकाशरूप सूर्य्य के तुल्य वर्त्तमान (देवत्रा) विद्वानों वा प्रकाशमय सूर्य्यादि पदार्थों में (देवम्) विजयादि लाभ के देनेवाले (ज्योतिः) स्वयं प्रकाशमयस्वरूप (उत्तमम्) सबसे बड़े (उत्तरम्) दुःखों से पार करनेवाले (सूर्य्यम्) अन्तर्यामी रूप से अपनी व्याप्ति कर सब चराचर के स्वामी परमात्मा को (पश्यन्तः) ज्ञान दृष्टि से देखते हुए (परि, उत्, अगन्म) सब ओर से उत्कृष्टता के साथ जानें, उसी को तुम लोग भी जानो ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य्य को देखते हुए दीर्घावस्थावाले धर्मात्मा जन सुख को प्राप्त होते, वैसे ही धर्मात्मा योगीजन महादेव, सबका प्रकाशक, जन्म-मृत्यु के क्लेश आदि से पृथक् वर्त्तमान, सच्चिदानन्दस्वरूप परमात्मा को साक्षात् जान मोक्ष को पाकर निरन्तर आनन्दित होते हैं ॥१४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

के मोक्षमधिगच्छन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(उत्) (वयम्) (तमसः) अन्धकारात् (परि) वर्जने (स्वः) स्वप्रकाशमादित्यम् (पश्यन्तः) प्रेक्षमाणाः (उत्तरम्) दुःखेभ्य उत्तारकं परत्र वर्त्तमानम् (देवम्) विजयादिलाभप्रदम् (देवत्रा) देवेषु विद्वत्सु प्रकाशमयेषु सूर्य्यादिषु वा (सूर्य्यम्) अन्तर्यामिरूपेण स्वव्याप्त्या चराऽचरात्मानं परमात्मानं (अगन्म) विजानीयाम (ज्योतिः) स्वप्रकाशम् (उत्तमम्) सर्वोत्कृष्टम् ॥१४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! वयं यं तमसस्परि स्वरिव वर्त्तमानं देवत्रा देवं ज्योतिरुत्तममुत्तरं सूर्य्यं पश्यन्तः सन्तः पर्य्युदगन्म, तमेव यूयमपि सर्वतो विजानीत ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! यथा सूर्य्यं पश्यन्तो दीर्घायुषो धर्मात्मानो जनाः सुखं लभन्ते, तथैव धार्मिका योगिनो महादेवं सर्वप्रकाशकं जन्ममृत्युक्लेशादिभ्यः पृथग् वर्त्तमानं सच्चिदानन्दस्वरूपं परमात्मानं साक्षाद् विज्ञाय मोक्षमवाप्य सततमानन्दन्ति ॥१४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे सूर्यापासून तेजस्वी दीर्घायू धर्मात्मा लोक सुख प्राप्त करतात, तसेच धर्मात्मा, योगी लोक सर्वांचा प्रकाशक असणाऱ्या, जन्ममृत्यूच्या क्लेशापासून पृथक असणाऱ्या महादेव, सच्चिदानंद परमेश्वराला साक्षात जाणून मोक्ष प्राप्त करून सतत आनंदात राहतात.