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अपा॒घमप॒ किल्वि॑ष॒मप॑ कृ॒त्यामपो॒ रपः॑। अपा॑मार्ग॒ त्वम॒स्मदप॑ दुः॒ष्वप्न्य॑ꣳ सुव ॥११ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अप॑। अ॒घम्। अप॑। किल्वि॑षम्। अप॑। कृ॒त्याम्। अपो॒ऽइत्यपोः॑। रपः॑ ॥ अपा॑मार्ग। अप॑मा॒र्गेत्यप॑ऽमार्ग। त्वम्। अ॒स्मत्। अप॑। दुः॒ष्वप्न्य॑म्। दुः॒ष्वप्न्य॒मिति॑ दुः॒ऽस्वप्न्य॑म्। सु॒व॒ ॥११ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:35» मन्त्र:11


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब कौन मनुष्य पवित्र करनेवाले हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अपामार्ग) अपामार्ग ओषधि जैसे रोगों को दूर करती, वैसे पापों को दूर करनेवाले सज्जन पुरुष ! (त्वम्) आप (अस्मत्) हमारे निकट से (अघम्) पाप को (अप, सुव) दूर कीजिये (किल्विषम्) मन की मलिनता को आप (अप) दूर कीजिये (कृत्याम्) दुष्टक्रिया को (अप) दूर कीजिये (रपः) बाह्य इन्द्रियों के चञ्चलता रूप अपराध को (अपो) दूर कीजिये और (दुःष्वप्न्यम्) बुरे प्रकार की निद्रा में होनेवाले बुरे विचार को (अप) दूर कीजिये ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य जैसे अपामार्ग आदि ओषधियाँ रोगों को निवृत्त कर प्राणियों को सुखी करती हैं, वैसे आप सब दोषों से पृथक् होके अन्य मनुष्यों को अशुभ आचरण से अलग कर शुद्ध होते और दूसरों को करते हैं, वे ही मनुष्यादि को पवित्र करनेवाले हैं ॥११ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ के पवित्रकारका इत्याह ॥

अन्वय:

(अप) दूरीकरणे (अघम्) पापम् (अप) (किल्विषम्) स्वान्तःस्थं मलम् (अप) (कृत्याम्) दुष्क्रियाम् (अपो) दूरीकरणे (रपः) बाह्येन्द्रियचाञ्चल्यजन्यमपराधम् (अपामार्ग) रोगनिवारकोऽपामार्ग ओषधिरिव पापदूरीकर्त्तः (त्वम्) (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् (अप) (दुःष्वप्न्यम्) दुष्टश्चासौ स्वप्नो निद्रा च तस्मिन् भवम् (सुव) प्रेरय ॥११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अपामार्ग ! त्वमस्मदघमपसुव, किल्विषमपसुव, कृत्यामपसुव, रपोऽपो सुव, दुःष्वप्न्यमपसुव ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोमालङ्कारः। यथाऽपामार्गाद्योषधयो रोगान्निवार्य्य प्राणिनः सुखयन्ति, तथा स्वयं सर्वेभ्यो दोषेभ्यः पृथग्भूत्वाऽन्यानशुभाचरणात् पृथक् कृत्वा ये शुद्धा भवन्त्यन्यान् भावयन्ति च त एव मनुष्यादीनां पवित्रकराः सन्ति ॥११ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे अपामार्ग वगैरे औषध रोग नष्ट करतात व प्राण्यांना सुखी करतात तसे जे स्वतः सर्व दोषांपासून दूर होऊन इतर माणसांना अशुभ आचरणापासून दूर करून निर्दोष बनतात व इतरांनाही निर्दोष करतात तेच माणसांना पवित्र करणारे असतात.