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पूष॒न्तव॑ व्र॒ते व॒यं न रि॑ष्येम॒ कदा॑ च॒न। स्तो॒तार॑स्तऽइ॒ह स्म॑सि ॥४१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पूष॑न्। तव॑। व्र॒ते व॒यम्। न। रि॒ष्ये॒म॒। कदा॑। च॒न ॥ स्तो॒तारः॑। ते॒। इ॒ह। स्म॒सि॒ ॥४१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:41


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर और आप्तजन के सेवक कैसे होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पूषन्) पुष्टिकारक परमेश्वर वा आप्तविद्वन् ! (वयम्) हम लोग (तव) आपके (व्रते) स्वभाव वा नियम में इससे वर्तें कि जिससे (कदा, चन) कभी भी (न) न (रिष्येम) चित्त बिगाड़ें (इह) इस जगत् में (ते) आपके (स्तोतारः) स्तुति करनेवाले हुए हम सुखी (स्मसि) होते हैं ॥४१ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमेश्वर के वा आप्त विद्वान् के गुणकर्मस्वभाव के अनुकूल वर्त्तते हैं, वे कभी नष्ट सुखवाले नहीं होते ॥४१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वराप्तसेविनः कीदृशा भवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(पूषन्) पुष्टिकारक ! (तव) (व्रते) शीले नियमे वा (वयम्) (न) निषेधे (रिष्येम) (कदा) (चन) कदाचिदपि (स्तोतारः) स्तुतिकर्त्तारः (ते) तव (इह) (स्मसि) स्मः ॥४१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पूषन् परमेश्वर आप्तविद्वन् वा ! वयं तव व्रते तस्माद् वर्त्तेमहि, यतो न कदा चन रिष्येम। इह ते स्तोतारः सन्तो वयं सुखिनः स्मसि ॥४१ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः परमेश्वरस्याप्तस्य वा गुणकर्मस्वभावानूकूला वर्त्तन्ते, कदाचिन्नष्टसुखा न जायन्ते ॥४१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे परमेश्वर किंवा आप्त विद्वानांच्या गुणकर्म स्वाभावानुसार वागतात त्यांचे सुख कधी नष्ट होत नाही.