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उ॒तेदानीं॒ भग॑वन्तः स्यामो॒त प्र॑पि॒त्वऽउ॒त मध्ये॒ऽअह्ना॑म्। उ॒तोदि॑ता मघव॒न्त्सूर्य्य॑स्य व॒यं दे॒वाना॑ सुम॒तौ स्या॑म ॥३७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। इ॒दानी॑म्। भग॑वन्त॒ इति॒ भग॑ऽवन्तः। स्या॒म॒। उ॒त। प्र॒पि॒त्व इति॑ प्रऽपि॒त्वे। उ॒त। मध्ये॑। अह्ना॑म् ॥ उ॒त। उदि॒तेत्युत्ऽइ॑ता। म॒घ॒व॒न्निति॑ मघऽवन्। सूर्य्य॑स्य। व॒यम्। दे॒वाना॑म्। सु॒म॒ताविति॑ सुऽम॒तौ। स्या॒म॒ ॥३७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:37


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ऐश्वर्य की उन्नति का विषय कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) उत्तम धनयुक्त ईश्वर वा विद्वन् ! (वयम्) हम लोग (इदानीम्) वर्त्तमान समय में (उत) और (प्रपित्वे) पदार्थों की प्राप्ति में (उत) और भविष्यकाल में (उत) और (अह्नाम्) दिनों में (मध्ये) बीच (भगवन्तः) (स्याम) समस्त ऐश्वर्य से युक्त हों। (उत) और (सूर्यस्य) सूर्य के (उदिता) उदय समय तथा (देवानाम्) विद्वानों की (सुमतौ) उत्तम बुद्धि में समस्त ऐश्वर्ययुक्त (स्याम) हों ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि वर्त्तमान और भविष्यत् काल में योग के ऐश्वर्यों की उन्नति से लौकिक व्यवहार के बढ़ाने और प्रशंसा में निरन्तर प्रयत्न करें ॥३७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथैश्वर्योन्नतिविषयमाह ॥

अन्वय:

(उत) अपि (इदानीम्) वर्त्तमानसमये (भगवन्तः) सकलैश्वर्ययुक्ताः (स्याम) (उत) अपि (प्रपित्वे) पदार्थानां प्रापणे (उत) (मध्ये) (अह्नाम्) दिवसानाम् (उत) (उदिता) उदयसमये (मघवन्) परमपूजितधनयुक्त ! (सूर्यस्य) (वयम्) (देवानाम्) (सुमतौ) (स्याम) ॥३७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मघवन् ! वयमिदानीमुत प्रपित्वे उत भविष्यति उताह्नां मध्ये भगवन्तः स्याम। उत सूर्यस्योदिता देवानां सुमतौ भगवन्तः स्याम ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्वर्त्तमाने भविष्यति च योगैश्वर्यस्योन्नतेर्लौकिकस्य व्यवहारस्य वर्द्धने प्रशंसायाञ्च सततं प्रयतितव्यम् ॥३७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी वर्तमानकाळात व भविष्यात योगानुष्ठान वाढवावे व लौकिक व्यवहार प्रशंसायुक्त होईल असा सतत प्रयत्न करावा.