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भग॒ प्रणे॑त॒र्भग॒ सत्य॑राधो॒ भगे॒मां धिय॒मुद॑वा॒ दद॑न्नः। भग॒ प्र नो॑ जनय॒ गोभि॒रश्वै॒र्भग॒ प्र नृभि॑र्नृ॒वन्तः॑ स्याम ॥३६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भग॑। प्रणे॑तः। प्रने॑तरिति॑ प्रऽने॑तः। भग॑। सत्य॑राध॒ इति॒ सत्य॑ऽराधः। भग॑। इ॒माम्। धिय॑म्। उत्। अ॒व॒। दद॑त्। नः॒ ॥ भग॑। प्र। नः॒। ज॒न॒य॒। गोभिः॑। अश्वैः॑। भग॑। प्र। नृभि॒रिति॒ नृऽभिः॑। नृ॒वन्त॒ इति॑ नृ॒ऽवन्तः॑। स्या॒म॒ ॥३६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:36


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर की प्रार्थना आदि विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (भग) ऐश्वर्ययुक्त ! (प्रणेतः) पुरुषार्थ के प्रति प्रेरक ईश्वर वा हे (भग) ऐश्वर्य के दाता ! (सत्यराधः) विद्यमान पदार्थों में उत्तम धनोंवाले (भग) सेवने योग्य विद्वान् आप (नः) हमारी (इमाम्) इस वर्त्तमान (धियम्) बुद्धि को (ददत्) देते हुए (उत्, अव) उत्कृष्टता से रक्षा कीजिये। हे (भग) विद्यारूप ऐश्वर्य के दाता ईश्वर वा विद्वान् ! आप (गोभिः) गौ आदि पशुओं (अश्वैः) घोड़े आदि सवारियों और (नृभिः) नायक कुलनिर्वाहक मनुष्यों के साथ (नः) हमको (प्र, जनय) प्रकट कीजिये। हे (भग) सेवा करते हुए विद्वन् ! जिससे हम लोग (नृवन्तः) प्रशस्त मनुष्योंवाले (प्रस्याम) अच्छे प्रकार हों, वैसे कीजिये ॥३६ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि जब-जब ईश्वर की प्रार्थना तथा विद्वानों का सङ्ग करें, तब-तब बुद्धि की ही प्रार्थना वा श्रेष्ठ पुरुषों की चाहना किया करें ॥३६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरप्रार्थनादिकविषयमाह ॥

अन्वय:

(भग) ऐश्वर्ययुक्त ! (प्रणेतः) पुरुषार्थं प्रति प्रेरक (भग) ऐश्वर्यप्रद ! (सत्यराधः) सत्सु साधूनि राधांसि धनानि यस्य तत्सम्बुद्धौ (भग) भजनीय ! (इमाम्) वर्त्तमानाम् (धियम्) प्रज्ञाम् (उत्) (अव) रक्ष। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङः [अ०६.३.१३५] इति दीर्घः। (ददत्) ददानः (नः) अस्माकम् (भग) विद्यैश्वर्यप्रद ! (प्र) (नः) अस्मान् (जनय) प्रकटय (गोभिः) धेन्वादिभिः (अश्वैः) अश्वादिभिः (भग) भजमान ! (प्र) (नृभिः) नायकैः (नृवन्तः) (स्याम) भवेम ॥३६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भग ! त्वं नोऽस्माकमिमां धियं ददत् सदुदव। हे भग ! त्वं गोभिरश्वैर्नृभिस्सह नोऽस्मान् प्रजनय। हे भग ! येन वयं नृवन्तः प्रस्याम तथा विधेहि ॥३६ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यदा यदेश्वरस्य प्रार्थना विदुषां सङ्गः क्रियेत, तदा प्रज्ञैव याचनीयोतापि सन्तः पुरुषाः ॥३६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसे जेव्हा जेव्हा ईश्वराची प्रार्थना व विद्वानांची संगती करतात तेव्हा तेव्हा त्यांनी बुद्धीची प्रार्थना किंवा श्रेष्ठ पुरुषांच्या संगतीची कामना करावी.