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प्रा॒तर॒ग्निं प्रा॒तरिन्द्र॑ꣳ हवामहे प्रा॒तर्मि॒त्रावरु॑णा प्रा॒तर॒श्विना॑। प्रा॒तर्भगं॑ पू॒षणं॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिं॑ प्रा॒तः सोम॑मु॒त रु॒द्रꣳ हु॑वेम ॥३४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रा॒तः। अ॒ग्निम्। प्रा॒तः। इन्द्र॑म्। ह॒वा॒म॒हे॒। प्रा॒तः। मि॒त्रावरु॑णा। प्रा॒तः। अ॒श्विना॑ ॥ प्रा॒तः। भग॑म्। पू॒षण॑म्। ब्रह्म॑णः। पति॑म्। प्रा॒तरिति॑ प्रा॒तः। सोम॑म्। उ॒त। रु॒द्रम्। हु॒वे॒म॒ ॥३४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:34


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (प्रातः) प्रातःकाल (अग्निम्) पवित्र वा स्वयं प्रकाशस्वरूप परमात्मा वा अग्नि को (प्रातः) प्रातःसमय (इन्द्रम्) उत्तम ऐश्वर्य को (प्रातः) प्रभात समय (मित्रावरुणा) प्राण उदान को और (प्रातः) प्रभात समय (अश्विना) अध्यापक तथा उपदेशक को (हवामहे) ग्रहण करें वा बुलावें (प्रातः) प्रातःसमय (भगम्) सेवन करने योग्य भाग (पूषणम्) पुष्टिकारक भोग (ब्रह्मणस्पतिम्) धन को वा वेद के रक्षक को (प्रातः) प्रभात समय (सोमम्) सोमादि ओषधिगण (उत) और (रुद्रम्) जीव को (हुवेम) ग्रहण वा स्वीकृत करें, वैसे तुम लोग भी आचरण करो ॥३४ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य प्रातःकाल परमेश्वर की उपासना, अग्निहोत्र, ऐश्वर्य की उन्नति का उपाय, प्राण और अपान की पुष्टि करना, अध्यापक, उपदेशक, विद्वानों तथा ओषधि का सेवन और जीवात्मा को प्राप्त होने वा जानने को प्रयत्न करते हैं, वे सब सुखों से सुशोभित होते हैं ॥३४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(प्रातः) प्रभाते (अग्निम्) पवित्रं स्वप्रकाशं परमात्मानं पावकमग्निं वा (प्रातः) (इन्द्रम्) परमैश्वर्यम् (हवामहे) आदद्यामाह्वयेम वा (प्रातः) (मित्रावरुणा) प्राणोदानौ (प्रातः) (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (प्रातः) (भगम्) भजनीयं भागम् (पूषणम्) पुष्टिकरं भोगम् (ब्रह्मणः) धनस्य वेदस्य (पतिम्) स्वामिनं पालकम् (प्रातः) (सोमम्) ओषधिगणम् (उत) अपि (रुद्रम्) जीवम् (हुवेम) गृह्णीयाम ॥३४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा वयं प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना हवामहे, प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रञ्च हुवेम, तथा यूयमप्याचरत ॥३४ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः प्रातः परमेश्वरोपासनमग्निहोत्रमैश्वर्योन्नत्युपायं प्राणापानपुष्टिकरणमध्यापकोपदेशकान् विदुष ओषधिसेवनं जीवं च प्राप्तुं ज्ञातुं च प्रयतन्ते, ते सर्वैः सुखैरलङ्कृताः स्युः ॥३४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे प्रातःकाली परमेश्वराची उपासना, अग्निहोत्र, ऐश्वर्याच्या प्राप्तीचे उपाय, प्राण, अपान यांची पुष्टी, औषधसेवन, अध्यापक, उपदेशक, विद्वानांचा संग, जीवात्म्याचे ज्ञान प्राप्त करण्याचा प्रयत्न करतात. त्यांना सर्व सुख मिळून ते सुशोभित होतात.