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उष॒स्तच्चि॒त्रमा भ॑रा॒स्मभ्यं॑ वाजिनीवति। येन॑ तो॒कं च॒ तन॑यं च॒ धाम॑हे ॥३३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उषः॑। तत्। चि॒त्रम्। आ। भ॒र॒। अ॒स्मभ्य॑म्। वा॒जि॒नी॒व॒तीति॑ वाजिनीऽवति ॥ येन॑। तो॒कम्। च॒। तन॑यम्। च॒। धाम॑हे ॥३३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:33


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उषःकाल का वर्णन अगले मन्त्र में करते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वाजिनीवति) बहुत अन्नादि ऐश्वर्यों से युक्त (उषः) प्रातःसमय की वेला के तुल्य कान्तिसहित वर्त्तमान स्त्रि ! जैसे अधिकार अन्नादि ऐश्वर्य की हेतु प्रातःकाल की वेला जिस प्रकार के (चित्रम्) आश्चर्यस्वरूप को धारण करती (तत्) वैसे रूप को तू (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (आ, भर) अच्छे प्रकार पुष्ट कर (येन) जिससे हम लोग (तोकम्) शीघ्र उत्पन्न हुए बालक (च) और (तनयम्) कुमारावस्था के लड़के को (च) भी (धामहे) धारण करें ॥३३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सब शोभा से युक्त मङ्गल देनेवाली प्रभात समय की वेला सब व्यवहारों को धारण करनेवाली है, यदि वैसी स्त्रियाँ हों तो सदा अपने अपने पति को प्रसन्न कर पुत्र-पौत्रादि के साथ आनन्द को प्राप्त होवें ॥३३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरुषो वर्णनमुपदिश्यते ॥

अन्वय:

(उषः) उषोवद्वर्त्तमाने (तत्) (चित्रम्) अद्भुतस्वरूपम् (आ) (भर) पोषय (अस्मभ्यम्) (वाजिनीवति) बह्वन्नाद्यैश्वर्य्ययुक्ते (येन) (तोकम्) सद्यो जातमपत्यम् (च) (तनयम्) प्राप्तकुमारावस्थम् (च) (धामहे) धरेम ॥३३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वाजिनीवत्युषर्वद्वर्त्तमाने स्त्रि ! यथा वाजिनीवत्युषा यादृशं चित्रं स्वरूपं धरति, तत् तादृशमस्मभ्यं त्वामाभर, येन वयं तोकं च तनयं च धामहे ॥३३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सर्वशोभायुक्ता मङ्गलप्रदा प्रभातवेला सर्वव्यवहारधारिका वर्त्तते, तथाभूताः स्त्रियो यदि स्युस्तर्हि ताः सदा स्वं पतिं प्रसाद्य पुत्रपौत्रादिना आनन्दं लभेरन् ॥३३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. मंगल प्रभातसमयी सर्व व्यवहार चालू होतात. जर स्रिया तशा प्रकारे व्यवहार करत असतील, तर त्या आपल्या पतींना प्रसन्न करून पुत्रपौत्रासह आनंदान राहू शकतात.