वांछित मन्त्र चुनें

अप्न॑स्वतीमश्विना॒ वाच॑म॒स्मे कृ॒तं नो॑ दस्रा वृषणा मनी॒षाम्। अ॒द्यूत्येऽव॑से॒ नि ह्व॑ये वां वृ॒धे च॑ नो भवतं॒ वाज॑सातौ ॥२९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अप्न॑स्वतीम्। अ॒श्वि॒ना॒। वाच॑म्। अ॒स्मेऽइत्य॒स्मे। कृ॒तम्। नः॒। द॒स्रा॒। वृ॒ष॒णा॒। म॒नी॒षाम् ॥अ॒द्यू॒त्ये। अव॑से। नि। ह्व॒ये॒। वा॒म्। वृ॒धे। च॒। नः॒। भ॒व॒त॒म्। वाज॑साता॒विति॒ वाज॑ऽसातौ ॥२९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:29


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (दस्रा) दुःख के नाशक (वृषणा) सुख के वर्षानेवाले (अश्विना) सब विद्याओं में व्याप्त अध्यापक और उपदेशक लोगो ! तुम दोनों (अस्मे) हमारी (वाचम्) वाणी (च) और (मनीषाम्) बुद्धि को (अप्नस्वतीम्) प्रशस्त कर्मोंवाली (कृतम्) करो (नः) हमारे (अद्यूत्ये) द्यूतरहित स्थान में हुए कर्म में (अवसे) रक्षा के लिये स्थित करो (वाजसातौ) धन का विभाग करनेहारे सङ्ग्राम में (न) हमारी (वृधे) वृद्धि के लिये (भवतम्) उद्यत होओ, जिन (वाम्) तुम्हारी (नि, ह्वये) निरन्तर स्तुति करता हूँ, वे दोनों आप मेरी उन्नति करो ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य निष्कपट आप्त विद्वानों का निरन्तर सेवन करते हैं, वे प्रगल्भ धार्मिक विद्वान् होके सब ओर बढ़ते और विजयी होते हुए सबके लिये सुखदायी होते हैं ॥२९ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अप्नस्वतीम्) प्रशस्तान्यप्नांसि कर्माणि विद्यन्ते यस्यास्ताम् (अश्विना) सकलविद्याव्यापिनावध्यापकोपदेशकौ ! (वाचम्) वाणीम् (अस्मे) अस्माकम् (कृतम्) कुरुतम् (नः) अस्माकम् (दस्रा) दुःखोपक्षयितारौ (वृषणा) सुखस्य वर्षयितारौ (मनीषाम्) उत्तमां प्रज्ञाम् (अद्यूत्ये) अविद्यमानानि द्यूतानि यस्मिंस्तस्मिन् भवे (अवसे) रक्षणाय (नि, ह्वये) नितरां स्तौमि (वाम्) युवाम् (वृधे) वर्द्धनाय (च) (नः) अस्माकम् (भवतम्) (वाजसातौ) वाजस्य धनस्य विभाजके सङ्ग्रामे ॥२९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे दस्रा वृषणाऽश्विना ! युवामस्मे वाचं मनीषां चाप्नस्वतीं कृतं नोऽद्यूत्येऽवसे स्थापयतम्। वाजसातौ नो वृधे च भवतं यौ वामहन्निह्वये तौ मामुन्नयतम् ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या निष्कपटानाप्तान् दयालून् विदुषः सततं सेवन्ते, ते प्रगल्भा धार्मिका विद्वांसो भूत्वा सर्वतो वर्द्धमाना विजयिनः सन्तः सर्वेभ्यः सुखदा भवन्ति ॥२९ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे निष्कपटी, आप्त, दयाळू विद्वानांचे अनुयायी बनून प्रगल्भ धार्मिक विद्वान होतात. ती सर्व प्रकारे उन्नत होतात व सर्वांना सुखी करतात.