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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) सूर्य चन्द्रमा के तुल्य अध्यापक उपदेशको ! (उभा) दोनों तुम लोग जिस जगह पर उत्तम रस को (पिबतम्) पिओ उस (शर्म) उत्तम आश्रय स्थान वा सुख को (उभा) दोनों तुम (अविद्रियाभिः) छिद्ररहित (ऊतिभिः) रक्षादि क्रियाओं से रक्षित घर को (नः) हमारे लिये (यच्छतम्) देओ ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - अध्यापक और उपदेशक लोगों को चाहिये कि सदा उत्तम घर बनाने के और निवास के उपदेशों को कर जहाँ पूर्ण रक्षा हो, उस विषय में सबको प्रेरणा करें ॥२८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(उभा) द्वौ (पिबतम्) (अश्विना) सूर्य्याचन्द्रमसाविवाऽध्यापकोपदेशकौ ! (उभा) द्वौ (नः) अस्मभ्यम् (शर्म) श्रेष्ठं शरणं सुखं वा (यच्छतम्) दद्यातम् (अविद्रियाभिः) अच्छिद्राभिः (ऊतिभिः) रक्षणादिभिः ॥२८ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे अश्विना ! उभा युवां यत्रोत्तमं रसं पिबतं तच्छर्मोभा युवामविद्रियाभिरूतिभी रक्षितं गृहं नो यच्छतम् ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - अध्यापकोपदेशकैः सदोत्तमगृहरचननिवासोपदेशान् कृत्वा यत्र पूर्णा रक्षा स्यात्, तत्र सर्वे प्रेरणीयाः ॥२८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अध्यापक व उपदेशक यांनी लोकांना असा उपदेश करावा व प्रेरणा द्यावी की नेहमी पूर्ण रक्षण होईल असे उत्तम घर बांधून त्यात निवास करावा.