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ये ते॒ पन्थाः॑ सवितः पू॒र्व्यासो॑ऽरे॒णवः॒ सुकृ॑ताऽअ॒न्तरि॑क्षे। तेभि॑र्नोऽअ॒द्य प॒थिभिः॑ सु॒गेभी॒ रक्षा॑ च नो॒ऽअधि॑ च ब्रूहि देव ॥२७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। ते॒। पन्थाः॑। स॒वि॒त॒रिति॑ सवितः। पू॒र्व्यासः॑। अ॒रे॒णवः॑। सुकृ॑ता॒ इति॒॑ सुऽकृ॑ताः। अ॒न्तरि॑क्षे ॥ तेभिः। नः॒। अ॒द्य। प॒थिभि॒रति॑ प॒थिऽभिः॑। सु॒गेभि॒रिति॑ सु॒ऽगेभिः। रक्षा॑। च॒। नः॒। अधि॑। च॒। ब्रू॒हि॒। दे॒व॒ ॥२७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:27


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अध्यापक और उपदेशक विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सवितः) सूर्य के तुल्य ऐश्वर्य देनेवाले (देव) विद्या और सुख के दाता आप्त विद्वान् पुरुष ! जिस (ते) आपके जैसे सूर्य के (अन्तरिक्षे) आकाश में गमन के शुद्ध मार्ग हैं, वैसे (ये) जो (पूर्व्यासः) पूर्वज आप्तजनों ने सेवन किये (अरेणवः) धूलि आदि रहित (सुकृताः) सुन्दर सिद्ध किये (पन्था) मार्ग हैं, (तेभिः) उन (सुगेभिः) सुखपूर्वक जिनमें चलें ऐसे (पथिभिः) मार्गों से (अद्य) आज (नः) हम लोगों को चलाइये, इन मार्गों से चलते हुए हमारी (रक्ष) रक्षा (च) भी कीजिये (च) तथा (नः) हमको (अधि, ब्रूहि) अधिकतर उपदेश कीजिये, इसी प्रकार सबको चेतन कीजिये ॥२७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वानो ! तुमको चाहिये कि जैसे सूर्य के आकाश में निर्मल मार्ग हैं, वैसे ही उपदेश और अध्यापन से विद्या, धर्म और सुशीलता के दाता मार्गों का प्रचार करें ॥२७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाध्यापकोपदेशकविषयमाह ॥

अन्वय:

(ये) (ते) तव (पन्थाः) मार्गाः। अत्र वचनव्यत्ययेनैकवचनम्। (सवितः) सवितृवदैश्वर्यप्रद (पूर्व्यासः) पूर्वैराप्तैः सेविताः (अरेणवः) अविद्यमाना रेणवो येषु ते (सुकृताः) सुष्ठु निष्पादिताः (अन्तरिक्षे) आकाशे (तेभिः) तैः (नः) अस्मान् (अद्य) इदानीम् (पथिभिः) मार्गैः (सुगेभिः) सुखेन गमनाऽधिकरणैः (रक्ष) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङः [अ०६.३.१३५] इति दीर्घः। (च) (नः) अस्मान् (अधि) उपरिभावे (च) (ब्रूहि) उपदिश (देव) सुखविद्ययोर्दातः ॥२७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सवितर्देवाऽऽप्तविद्वन् ! यस्य ते सूर्यस्यान्तरिक्षे इव ये पूर्व्यासोऽरेणवः सुकृताः पन्थाः सन्ति, तेभिस्सुगेभिः पथिभिरद्य नो नय, तत्र गच्छतो नो रक्ष च नोऽस्मांश्चाधि ब्रूहि। एवं सर्वान् प्रति बोधय ॥२७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! युष्माभिर्यथा सूर्यास्याऽन्तरिक्षे निर्मलाः मार्गाः सन्ति, तथैवोपदेशाध्यापनाभ्यां विद्याधर्मसुशीलप्रदाः पन्थानः प्रचारणीयाः ॥२७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो ! सूर्याचा अंतरिक्षातील गमनमार्ग जसा व्यवस्थित व शुद्ध असतो, तसे उपदेशक व अध्यापक यांनी विद्या व सुशीलता या मार्गाचा प्रसार करावा.