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सिनी॑वालि॒ पृथु॑ष्टुके॒ या दे॒वाना॒मसि॒ स्वसा॑। जु॒षस्व॑ ह॑व्यमाहु॑तं प्र॒जां दे॑वि दिदिड्ढि नः ॥१० ॥

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पद पाठ

सिनी॑वालि। पृथु॑ष्टुके। पृथु॑स्तुक॒ इति॒ पृथु॑ऽस्तुके। या। दे॒वाना॑म्। असि॑। स्वसा॑ ॥ जु॒षस्व॑। ह॒व्यम्। आहु॑त॒मित्याऽहु॑तम्। प्र॒जामिति॑ प्र॒ऽजाम्। दे॒वि॒। दि॒दि॒ड्ढि॒। नः॒ ॥१० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:10


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विदुषी कुमारी क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सिनीवालि) प्रेमयुक्त बल करनेहारी (पृथुष्टुके) जिसकी विस्तृत स्तुति शिर के बाल वा कामना हो, ऐसी (देवि) विदुषि कुमारी (या) जो तू (देवानाम्) विद्वानों की (स्वसा) बहिन (असि) है, सो (हव्यम्) ग्रहण करने योग्य (आहुतम्) अच्छे प्रकार वर दीक्षादि कर्म्मों से स्वीकार किये पति का (जुषस्व) सेवन कर और (नः) हमारे लिये (प्रजाम्) सुन्दर सन्तानरूप प्रजा को (दिदिड्ढि) दे ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - हे कुमारियो ! तुम ब्रह्मचर्य्य आश्रम के साथ समस्त विद्याओं को प्राप्त हो, युवति हो के अपने को अभीष्ट स्वयं परीक्षा किये वरने योग्य पतियों को आप वरो, उन पतियों के साथ आनन्द कर प्रजा, पुत्रादि को उत्पन्न किया करो ॥१० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विदुष्यः कुमार्यः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(सिनीवालि) सिनी प्रेमबद्धा चासौ बलकारिणी च तत्सम्बुद्धौ (पृथुष्टुके) पृथुर्विस्तीर्णा ष्टुका स्तुतिः केशभारः कामो वा यस्य तत्सम्बुद्धौ महास्तुते पृथुकेशभारे पृथुकामे वा (या) (देवानाम्) विदुषाम् (असि) (स्वसा) भगिनी (जुषस्व) (हव्यम्) आदातुमर्हम् (आहुतम्) समन्तात् वरदीक्षादिकर्मभिः स्वीकृतं पतिम् (प्रजाम्) सुसन्तानरूपाम् (देवि) विदुषि (दिदिड्ढि) दिश देहि। अत्र दिश धातोर्बहुलं छन्दसीति शपः श्लुः। (नः) अस्मभ्यम् ॥१० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सिनीवालि पृथुष्टुके देवि विदुषि कुमारि ! या त्वं देवानां स्वसाऽसि, सा हव्यमाहुतं पतिं जुषस्व नः प्रजां दिदिड्ढि ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - हे कुमार्यो ! यूयं ब्रह्मचर्य्येण समग्रा विद्याः प्राप्य युवतयो भूत्वा स्वेष्टान् स्वपरीक्षितान् वर्त्तुमर्हान् पतीन् स्वयं वृणुत, तैः सहानन्द्य प्रजा उत्पादयत ॥१० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे कुमारिकांनो ! तुम्ही ब्रह्मचर्याश्रमात संपूर्ण विद्या प्राप्त करून यौवनावस्थेत स्वतः परीक्षा करून योग्य पतींचे वर्णन करा आणि त्या पतींबरोबर आनंदाने संताने उत्पन्न करा.