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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्य सूर्य के तुल्य दोषों को विनाशे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जैसे (समिद्धः) सम्यक् प्रदीप्त (शुक्रः) शीघ्रकारी (अग्निः) सूर्य्यादिरूप अग्नि (वृत्राणि) मेघ के अवयवों को (जङ्घनत्) शीघ्र काटता है, वैसे (द्रविणस्युः) अपने धन को चाहनेवाले (आहुतः) बुलाये हुए आप (विपन्यया) विशेष व्यवहार की युक्ति से दुष्टों को शीघ्र मारिये ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे व्यवहार का जाननेवाला पुरुष धन को पाके सत्कार को प्राप्त होकर दोषों को नष्ट करता है, वैसे सूर्य मेघ को ताड़ना देता है ॥९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्यः सूर्यवद्दोषान् हन्यादित्याह ॥
अन्वय:
(अग्निः) सूर्यादिरूपः (वृत्राणि) मेघावयवान् (जङ्घनत्) भृशं हन्ति (द्रविणस्युः) आत्मनो द्रविणमिच्छुः (विपन्यया) विशेषव्यवहारयुक्त्या (समिद्धः) सम्यक् प्रदीप्तः (शुक्रः) शीघ्रकर्त्ता (आहुतः) कृताह्वानः ॥९ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यथा समिद्धः शुक्रोऽग्निर्वृत्राणि जङ्घनत्, तथा द्रविणस्युराहुतो भवान् विपन्यया दुष्टान् भृशं हन्यात् ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा व्यवहारवित् पुरुषो धनं प्राप्य सत्कृतो भूत्वा दोषान् हन्ति, तथा सूर्यो मेघं ताडयति ॥९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा व्यवहारज्ञ पुरुष धन प्राप्त करून मान्यता मिळवितो व दोष नाहीसे करतो तसे सूर्य मेघांना हटवितो.