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प्रैतु॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॒ प्र दे॒व्ये᳖तु सू॒नृता॑। अच्छा॑ वी॒रं नर्य्यं॑ प॒ङ्क्तिरा॑धसं दे॒वा यज्ञं॒ न॑यन्तु नः ॥८९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। ए॒तु॒। ब्रह्म॑णः। पतिः॑। प्र। दे॒वी। ए॒तु॒। सू॒नृता॑ ॥ अच्छ॑। वी॒रम्। नर्य्य॑म्। प॒ङ्क्तिरा॑धस॒मिति॑ प॒ङ्क्तिऽरा॑धसम्। दे॒वाः। य॒ज्ञम्। न॒य॒न्तु॒। नः॒ ॥८९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:89


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग जैसे (नः) हमको (ब्रह्मणस्पतिः) धन वा वेद का रक्षक अधिष्ठाता विद्वान् (प्र, एतु) प्राप्त होवे (सूनृता) सत्य लक्षणों से उज्ज्वल (देवी) शुभ गुणों से प्रकाशमान वाणी (प्र, एतु) प्राप्त हो (नर्य्यम्) मनुष्यों में उत्तम (पङ्क्तिराधसम्) समूह की सिद्धि करनेहारे (यज्ञम्) सङ्गत धर्मयुक्त व्यवहारकर्त्ता (वीरम्) शूरवीर पुरुष को (देवाः) विद्वान् लोग (अच्छ, नयन्तु) अच्छे प्रकार प्राप्त करें, वैसे हमको प्राप्त होओ ॥८९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो लोग विद्वानों, सत्यवाणी और सर्वोपकारी वीर पुरुषों को प्राप्त हों, वे सम्यक् सुख की उन्नति करें ॥८९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(प्र) (एतु) प्राप्नोतु (ब्रह्मणस्पतिः) धनस्य वेदस्य वा पालकः स्वामी (प्र) (देवी) शुभगुणैर्देदीप्यमाना (एतु) प्राप्नोतु (सूनृता) सत्यलक्षणोज्ज्वलिता वाक् (अच्छ) अत्र निपातस्य च [अ०६.३.१३६] इति दीर्घः। (वीरम्) (नर्यम्) नृषु साधुम् (पङ्क्तिराधसम्) पङ्क्तेः समूहस्य राधः संसिद्धिर्यस्मात् तम् (देवाः) विद्वांसः (यज्ञम्) सङ्गतधर्म्यं व्यवहारकर्त्तारम् (नयन्तु) प्रापयन्तु वा (नः) अस्मान् ॥८९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यूयं यथा नोऽस्मान् ब्रह्मणस्पतिः प्रैतु, सूनृता देवो प्रैतु, नर्य्यं पङ्क्तिराधसं यज्ञं वीरं देवा अच्छ नयन्तु तथा अस्मान् प्राप्नुत ॥८९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विदुषः सत्यां वाचं सर्वोपकारान् वीरांश्च प्राप्नुयुस्ते सम्यक् सुखोन्नतिं कुर्य्युः ॥८९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक विद्वानांच्या सहवासात राहतात, सत्य बोलतात, सर्वांवर उपकार करणाऱ्या वीर पुरुषांना जवळ करतात त्यांना सुख प्राप्त होते.