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अ॒यंꣳ स॒हस्र॒मृषि॑भिः॒ सह॑स्कृतः समु॒द्रऽइ॑व पप्रथे। स॒त्यः सोऽअ॑स्य महि॒मा गृ॑णे॒ शवो॑ य॒ज्ञेषु॑ विप्र॒राज्ये॑ ॥८३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒यम्। स॒हस्र॑म्। ऋषि॑भि॒रित्यृषि॑ऽभिः। सह॑स्कृतः। सहः॑कृत॒ इति॒ सहः॑ऽकृतः। स॒मु॒द्रःऽइ॒वेति॑ समु॒द्रःऽइ॑व। प॒प्र॒थे॒ ॥ स॒त्यः। सः। अ॒स्य॒। म॒हि॒मा। गृ॒णे॒। शवः॑। य॒ज्ञेषु॑। वि॒प्र॒राज्य॒ इति॑ विप्र॒ऽराज्ये॑ ॥८३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:83


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अयम्) यह सभापति राजा (ऋषिभिः) वेदार्थवेत्ता राजर्षियों के साथ (सहस्रम्) असंख्य प्रकार के ज्ञान को प्राप्त (सहस्कृतः) बल से संयुक्त (सत्यः) और श्रेष्ठ व्यवहारों वा विद्वानों में उत्तम चतुर है (अस्य) इसका (महिमा) महत्त्व (समुद्रइव) समुद्र वा अन्तरिक्ष के तुल्य (पप्रथे) प्रसिद्ध होता है तो (सः) वह पूर्वोक्त मैं प्रजाजन इस राजा के (यज्ञेषु) संगत राजकार्यों और (विप्रराज्ये) बुद्धिमानों के राज्य में (शवः) बल की (गृणे) स्तुति करता हूँ ॥८३ ॥
भावार्थभाषाः - जो राजादि राजपुरुष विद्वानों के सङ्ग में प्रीति करनेवाले, साहसी, सत्यगुण-कर्म-स्वभावों से युक्त बुद्धिमान् के राज्य में अधिकार को पाये हुए संगत, न्याय और विनय से युक्त कामों को करें, उनकी आकाश के सदृश कीर्ति विस्तार को प्राप्त होती है ॥८३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अयम्) राजा (सहस्रम्) (ऋषिभिः) वेदार्थविद्भिः (सहस्कृतः) सहसा बलेन निष्पन्नः (समुद्र इव) सागर इवाऽन्तरिक्षमिव वा (पप्रथे) भवति (सत्यः) सत्सु व्यवहारेषु विद्वत्सु वा साधुः (सः) (अस्य) (महिमा) माहात्म्यम् (गृणे) स्तौमि (शवः) बलम् (यज्ञेषु) सङ्गतेषु राजकर्मसु (विप्रराज्ये) विप्राणां मेधाविनां राज्ये राष्ट्रे ॥८३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यद्ययं सभेशो राजा राजर्षिभिः सह सहस्रमसङ्ख्यं ज्ञानं प्राप्तः सहस्कृतः सत्योऽस्त्यस्य महिमा समुद्र इव पप्रथे, तर्हि स प्रजाजनोऽहमस्य यज्ञेषु विप्रराज्ये च शवो गृणे ॥८३ ॥
भावार्थभाषाः - ये राजादयो राजजना विद्वत्सङ्गप्रियाः साहसिनः सत्यगुणकर्मस्वभावा मेधाविराज्येऽधिकृताः सङ्गतानि न्यायविनययुक्तानि कर्माणि कुर्युस्तेषामाकाशमिव कीर्तिर्विस्तीर्णा भवति ॥८३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे राजे व राजपुरुष वगैरे विद्वानांच्या संगतीने प्रेमळ, साहसी बनतात. सत्य गुण कर्म, स्वभावानेयुक्त, न्यायाने व विनयाने बुद्धिमानाच्या राज्यात प्रशंसा पदे प्राप्त करून कार्य करतात त्यांची कीर्ती आकाशाप्रमाणे पसरते.