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इ॒माऽउ॑ त्वा पुरूवसो॒ गिरो॑ वर्द्धन्तु॒ या मम॑। पा॒व॒कव॑र्णाः॒ शुच॑यो विप॒श्चितो॒ऽभि स्तोमै॑रनूषत ॥८१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒माः। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। त्वा॒। पु॒रू॒व॒सो॒। पु॒रु॒व॒सो॒ इति॑ पुरुऽवसो। गिरः॑। व॒र्द्ध॒न्तु॒। याः। मम॑ ॥ पा॒व॒कव॒॑र्णा॒ इति॑ पाव॒कऽव॑र्णाः। शुच॑यः। वि॒प॒श्चित॒ इति॑ विपः॒ऽचितः। अ॒भि। स्तोमैः॑। अ॒नू॒ष॒त॒ ॥८१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:81


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पुरूवसो) बहुत पदार्थों में वास करनेहारे परमात्मन् ! (याः) जो (इमाः) ये (मम) मेरी (गिरः) वाणी (त्वा) आपको (उ) निश्चय कर (वर्द्धन्तु) बढ़ावें, उनको प्राप्त होके (पावकवर्णाः) अग्नि के तुल्य वर्णवाले तेजस्वी (शुचयः) पवित्र हुए (विपश्चितः) विद्वान् लोग (स्तोमैः) पदार्थविद्याओं की प्रशंसाओं से (अभि, अनूषत) सब ओर से प्रशंसा करें ॥८१ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि सदैव ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना, उपासना, उस ईश्वर की सत्ता के प्रतिपादन तथा अभ्यास और सत्यभाषण से अपनी वाणियों को शुद्ध कर विद्वान् होके सब पदार्थविद्याओं को प्राप्त होवें ॥८१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(इमाः) वक्ष्यमाणाः (उ) निश्चयार्थे (त्वा) त्वाम् (पुरूवसो) पुरुष बहुषु वासकर्त्तः (गिरः) वाचः (वर्द्धन्तु) वर्धयन्तु (याः) (मम) (पावकवर्णाः) पावकवत् पवित्रो गौरो वर्णो येषान्ते ब्रह्मवर्चस्विनः (शुचयः) पवित्रीभूताः (विपश्चितः) विद्वांसः (अभि) (स्तोमैः) पदार्थविद्याप्रशंसनैः (अनूषत) प्रशंसन्तु ॥८१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पुरूवसो परमात्मन् ! या इमा मम गिरस्त्वा उ वर्द्धन्तु ताः प्राप्य पावकवर्णाः शुचयो विपश्चित स्तोमैरभ्यनूषत ॥८१ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः सदैवेश्वरस्तुतिप्रार्थनोपासनाभिस्तदस्तित्वप्रतिपादनेनाऽभ्याससत्यभाषणाभ्याञ्च स्ववाचः शुद्धाः संपाद्य विद्वांसो भूत्वा सर्वाः पदार्थविद्याः प्राप्तव्याः ॥८१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी नेहमी ईश्वराची स्तुती, प्रार्थना व उपासना, ईश्वराच्या सत्तेचे प्रतिपादन, अभ्यास आणि सत्य भाषण यांनी आपली वाणी शुद्ध करून विद्वान व्हावे, तसेच सर्व पदार्थविद्या प्राप्त करावी.