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उप॑ नः सू॒नवो॒ गिरः॑ शृ॒ण्वन्त्व॒मृत॑स्य॒ ये। सु॒मृ॒डी॒का भ॑वन्तु नः ॥७७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उप॑। नः॒। सू॒नवः॑। गिरः॑। शृ॒ण्वन्तु॑। अ॒मृत॑स्य। ये ॥ सु॒मृ॒डी॒का इति॑ सुऽमृडी॒का भ॒व॒न्तु॒। नः॒ ॥७७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:77


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब माता-पिता अपने सन्तानों के प्रति क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (नः) हमारे (सूनवः) सन्तान (अमृतस्य) नाशरहित परमेश्वर के सम्बन्ध की वा नित्य वेद की (गिरः) वाणियों को (उप, शृण्वन्तु) अध्यापकादि के निकट सुनें वे (नः) हमारे लिये (सुमृडीकाः) उत्तम सुख करनेहारे (भवन्तु) होवें ॥७७ ॥
भावार्थभाषाः - जो माता-पिता अपने पुत्रों और कन्याओं को ब्रह्मचर्य के साथ वेदविद्या और उत्तम शिक्षा से युक्त कर शरीर और आत्मा के बलवाले करें तो उन सन्तानों के लिये अत्यन्त हितकारी हों ॥७७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ पितरौ स्वसन्तानान् प्रति किं कुर्यातामित्याह ॥

अन्वय:

(उप) (नः) अस्माकम् (सूनवः) अपत्यानि (गिरः) (शृण्वन्तु) (अमृतस्य) नाशरहितस्य परमेश्वरस्य नित्यस्य वेदस्य वा (ये) (सुमृडीकाः) सुष्ठु सुखकराः (भवन्तु) (नः) अस्मभ्यम् ॥७७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये नः सूनवोऽमृतस्य गिर उपशृण्वन्तु ते नस्सुमृडीका भवन्तु ॥७७ ॥
भावार्थभाषाः - यदि मातापितरौ स्वपुत्रान् कन्याश्च ब्रह्मचर्येण वेदविद्यया सुशिक्षया च युक्तान् कृत्वा शरीरात्मबलवतः कुर्यातां तर्हि तेभ्योऽत्यन्तसुखकरौ स्याताम् ॥७७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे माता-पिता आपल्या मुला-मुलींना ब्रह्मचर्यपालन व वेदविद्या शिकवून शरीर व आत्मा बलवान करतात त्यांच्या संतानांचे कल्याण होते.