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दैव्या॑वध्वर्यू॒ आ ग॑त॒ꣳ रथे॑न॒ सूर्य॑त्वचा। मध्वा॑ य॒ज्ञꣳ सम॑ञ्जाथे। तं प्र॒त्नथा॑। अ॒यं वे॒नः ॥७३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दैव्यौ॑। अ॒ध्व॒र्यू॒ऽइत्य॑ध्वर्यू। आ। ग॒त॒म्। रथे॑न। सूर्य॑त्व॒चेति॒ सूर्य॑ऽत्वचा ॥ मध्वा॑। य॒ज्ञम्। सम्। अ॒ञ्जा॒थ॒ऽ इत्य॑ञ्जाथे ॥७३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:73


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब यान बनाने का विषय अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (दैव्यौ) विद्वानों में कुशल प्रवीण (अध्वर्यू) अपने आत्मा को अहिंसा धर्म चाहते हुए विद्वानो ! तुम दोनों (सूर्यत्वचा) सूर्य के तुल्य कान्तिवाले (रथेन) आनन्द के हेतु यान से (आ, गतम्) आया करो और आकर (मध्वा) मधुर भाषण से (यज्ञम्) चलने रूप व्यवहार को (सम्, अञ्जाथे) सम्यक् प्रकट करो ॥७३ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि पृथिवी, जल और अन्तरिक्ष में चलनेवाले उत्तम शोभायमान सूर्य के तुल्य प्रकाशित यानों को बनावें और उनसे अभीष्ट कामनाओं को सिद्ध करें ॥७३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ याननिर्माणविषयमाह ॥

अन्वय:

(दैव्यौ) देवेषु विद्वत्सु कुशलौ (अध्वर्यू) आत्मनोऽध्वरमहिंसामिच्छन्तौ (आ) (गतम्) आगच्छतम् (रथेन) रमणहेतुना यानेन (सूर्यत्वचा) सूर्य इव प्रदीप्ता त्वग् यस्य तेन (मध्वा) मधुरभाषणेन (यज्ञम्) गमनाख्यं व्यवहारम् (सम्) (अञ्जाथे) प्रकटयतम् ॥७३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे दैव्यावध्वर्यू ! युवां सूर्यत्वचा रथेनागतमागत्य मध्वा यज्ञं समञ्जाथे ॥७३ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यानि भूजलान्तरिक्षगमकानि सुशोभितानि सूर्यवत् प्रकाशितानि यानानि निर्मातव्यानि तैरभीष्टाः कामाः साधनीयाः ॥७३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी पृथ्वी, जल व अंतरिक्षात चालणारी, तसेच सूर्यासारखी प्रकाशमय याने तयार करावीत व त्यांच्याकडून इष्ट कामनांची पूर्तता करवून घ्यावी.