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अद॑ब्धेभिः सवितः पा॒युभि॒ष्ट्वꣳ शि॒वेभि॑र॒द्य परि॑ पाहि नो॒ गय॑म्। हिर॑ण्यजिह्वः सुवि॒ताय॒ नव्य॑से॒ रक्षा॒ माकि॑र्नोऽअ॒घश॑ꣳसऽ ईशत ॥६९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अद॑ब्धेभिः। स॒वित॒रिति॑ सवितः। पा॒युभि॒रिति॑ पा॒युभिः॑। त्वम्। शि॒वेभिः॑। अ॒द्य। परि॑। पा॒हि॒। नः॒। गयम् ॥ हिर॑ण्यजिह्व इति॒ हिर॑ण्यऽजिह्वः। सु॒विताय॑। नव्य॑से। र॒क्ष॒। माकिः॑ नः॒। अ॒घशं॑सः। ई॒श॒त॒ ॥६९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:69


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सवितः) अनेक पदार्थों के उत्पादक तेजस्वि विद्वन् राजन् ! (त्वम्) आप (अदब्धेभिः) अहिंसित (शिवेभिः) कल्याणकारी (पायुभिः) रक्षाओं से (अद्य) आज (नः) हमारे (गयम्) प्रशंसा के योग्य सन्तान, धन और घर की (परि, पाहि) सब ओर से रक्षा कीजिये (हिरण्यजिह्वः) सबके हित में रमण करने योग्य वाणीवाले हुए आप (नव्यसे) अत्यन्त नवीन (सुविताय) ऐश्वर्य के लिये (नः) हमारी (रक्ष) रक्षा कीजिये, जिससे (अघशंसः) पाप की प्रशंसा करनेवाला दुष्ट चोर हम पर (माकिः) न (ईशत्) समर्थ होवे ॥६९ ॥
भावार्थभाषाः - प्रजाजनों को राजपुरुषों से ऐसा सम्बोधन करना चाहिये कि तुम लोग हमारे सन्तान, धन, घर और पदार्थों की रक्षा से नवीन ऐश्वर्य को प्राप्त करा के हमको पीड़ा देने हारे दुष्टों से दूर रक्खो ॥६९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अदब्धेभिः) अहिंसितैः (सवितः) अनेकपदार्थोत्पादक तेजस्विन् विद्वन् राजन् ! (पायुभिः) रक्षणैः (त्वम्) (शिवेभिः) कल्याणकारकैः (अद्य) (परि) (पाहि) रक्ष (नः) अस्माकम् (गयम्) प्रशंसनीयमपत्यं धनं गृहं वा। गय इत्यपत्यनाम ॥ (निघं०२.२) धननाम ॥ (निघं०२.१०) गृहनाम च ॥ (निघं०३.४) (हिरण्यजिह्वः) हिरण्यं हितरमणीया जिह्वा वाग् यस्य सः। हितरमणम्भवतीति वा हृदयरमणम्भवतीति वा ॥ (निरु०२.१०) जिह्वेति वाङ्नामसु पठितम् ॥ (निघं०१.११) (सुविताय) ऐश्वर्याय (नव्यसे) अतिशयेन नवीनाय (रक्ष) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङः [अ०६.३.१३५] इति दीर्घः। (माकिः) निषेधे (नः) अस्मान् (अघशंसः) अघस्य पापस्य स्तोता चोरः (ईशत) समर्थो भवेत् ॥६९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सवितस्वमदब्धेभिः शिवेभिः पायुभिरद्य नो गयं परिपाहि, हिरण्यजिह्वः सन् नव्यसे सुविताय नो रक्ष, यतोऽघशंसो नो माकिरीशत ॥६९ ॥
भावार्थभाषाः - प्रजाजनै राजपुरुषा एवं सम्बोधनीया यूयमस्माकमपत्यधनगृहादीनां पदार्थानां रक्षणेन नवीनं नवीनमैश्वर्यं प्रापय्यास्मभ्यं पीडाप्रदान् दूरे रक्षत ॥६९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - प्रजेने राजपुरुषांकडून अशी अपेक्षा करावी की, राजपुरुषांनी संतान, धन, घर वगैरे पदार्थांचे रक्षण करून नवनवीन प्रकारचे ऐश्वर्य प्राप्त करावे व प्रजेला त्रास देणाऱ्या दुष्टांना दूर करावे.