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न॒हि स्पश॒मवि॑दन्न॒न्यम॒स्माद् वै॑श्वान॒रात् पु॑रऽए॒तार॑म॒ग्नेः। एमे॑नमवृधन्न॒मृता॒ऽअम॑र्त्यं वैश्वान॒रं क्षैत्र॑जित्याय दे॒वाः६० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न॒हि। स्पश॑म्। अवि॑दन्। अ॒न्यम्। अ॒स्मात्। वै॒श्वा॒न॒रात्। पु॒र॒ऽए॒तार॒मिति॑ पुरःऽए॒तार॑म्। अ॒ग्नेः ॥ आ। ई॒म्। ए॒न॒म्। अ॒वृ॒ध॒न्। अ॒मृताः॑। अम॑र्त्यम्। वैश्वा॒न॒रम्। क्षैत्र॑जित्याय। दे॒वाः ॥६० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:60


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मनुष्य कैसे मोक्ष को प्राप्त होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (अमृताः) आत्मस्वरूप से मरणधर्मरहित (देवाः) विद्वान् लोग (अमर्त्यम्) नित्य व्यापकरूप (वैश्वानरम्) सबके चलानेवाले (एनम्) इस अग्नि को (क्षैत्रजित्याय) जिस क्रिया से खेतों को जोतते उस भूमि राज्य के होने के लिये (आ, अवृधन्) अच्छे प्रकार बढ़ाते हैं, वे (ईम्) सब ओर से (अस्मात्) इस (वैश्वानरात्) सब मनुष्यों के हितकारी (अग्नेः) अग्नि से (पुर एतारम्) पहिले पहुँचानेवाले (अन्यम्) भिन्न किसी को (स्पशम्) दूत (नहि) नहीं (अविदन्) जानते हैं ॥६० ॥
भावार्थभाषाः - जो उत्पत्ति-नाशरहित मनुष्य देहधारी जीव विजय के लिये उत्पत्ति-नाशरहित जगत् के स्वामी परमात्मा की उपासना कर उससे भिन्न की उसके तुल्य उपासना नहीं करते, वे बन्ध को छोड़ मोक्ष को प्राप्त होवें ॥६० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मनुष्याः कथं मोक्षमाप्नुवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(नहि) (स्पशम्) दूतम् (अविदन्) विजानन्ति (अन्यम्) (अस्मात्) (वैश्वानरात्) सर्वनरहितकरात् (पुर एतारम्) अग्रे गन्तारं शीघ्रकारिणम् (अग्नेः) पावकात् (आ) (ईम्) सर्वतः (एनम्) (अवृधन्) वर्द्धयन्ति (अमृताः) मृत्युधर्मरहिताः (अमर्त्यम्) मृत्युधर्मरहितम् (वैश्वानरम्) विश्वस्य नायकम् (क्षैत्रजित्याय) यया क्रियया क्षेत्राणि जयन्ति तस्या भावाय (देवाः) विद्वांसः ॥६० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - येऽमृता देवा अमर्त्यं वैश्वानरं क्षैत्रजित्यायैनमावृधन् त ईमस्माद् वैश्वानरादग्नेः पुर एतारमन्यं स्पशं नह्यविदन् ॥६० ॥
भावार्थभाषाः - ये नाशोत्पत्तिरहिता मनुष्यदेहधरा जीवा विजयायोत्पत्तिनाशरहितं जगत्स्वामिनं परमात्मानमुपास्यातो भिन्नं तद्वन्नोपासन्ते ते बन्धं विहाय मोक्षमभिगच्छेयुः ॥६० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - आत्मस्वरूपाने उत्पत्ती व नाशरहित परंतु मनुष्यरूपाने देहधारी असे जे जीव उत्पत्ती व नाशरहित व जगाचा स्वामी असलेल्या परमेश्वराची उपासना करतात त्यापेक्षा भिन्न असलेल्याची उपासना करत नाहीत, असे लोकच बंधनातून मुक्त होऊन मोक्षाची प्राप्ती करतात.