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इ॒न्द्र॒वा॒यू बृह॒स्पतिं॑ मि॒त्राग्निं पू॒षणं॒ भग॑म्। आ॒दि॒त्यान् मारु॑तं ग॒णम् ॥४५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒न्द्र॒वा॒यूऽइती॑न्द्रवा॒यू। बृह॒स्पति॑म्। मि॒त्रा। अ॒ग्निम्। पू॒षण॑म्। भग॑म् ॥ आ॒दि॒त्यान्। मारु॑तम्। ग॒णम् ॥४५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:45


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य विद्युत् आदि पदार्थों को जान के क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (इन्द्रवायू) बिजुली पवन (बृहस्पतिम्) बड़े लोकों के रक्षक सूर्य्य (मित्रा) प्राण (अग्निम्) अग्नि (पूषणम्) पुष्टिकारक (भगम्) ऐश्वर्य (आदित्यान्) बारह महीनों और (मारुतम्) वायुसम्बन्धि (गणम्) समूह को जान के उपयोग में लावें, वैसे तुम लोग भी उसका प्रयोग करो ॥४५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि सृष्टिस्थ विद्युत् आदि पदार्थों को जान और सम्यक् प्रयोग कर कार्य्यों को सिद्ध करें ॥४५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्या विद्युदादिपदार्थान् विज्ञाय किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(इन्द्रवायू) विद्युत्पवनौ (बृहस्पतिम्) बृहतां पालकं सूर्य्यम् (मित्रा) मित्रं प्राणम्। अत्र विभक्तेराकारादेशः। (अग्निम्) पावकम् (पूषणम्) पुष्टिकरम् (भगम्) ऐश्वर्यम् (आदित्यान्) द्वादशमासान् (मारुतम्) मरुत्सम्बन्धिनम् (गणम्) समूहम् ॥४५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा वयमिन्द्रवायू बृहस्पतिं मित्राग्निं पूषणं भगमादित्यान् मारुतं गणं विज्ञायोपयुञ्जीमहि तथा यूयमपि प्रयुङ्ग्ध्वम् ॥४५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैः सृष्टिस्थान् विद्युदादीन् पदार्थान् विज्ञाय संयुज्य कार्याणि साधनीयानि ॥४५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी सृष्टीतील विद्युत इत्यादी पदार्थांचे ज्ञान प्राप्त करावे व त्याचा उपयोग करून घ्यावा.