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प्र वा॑वृजे सुप्र॒या ब॒र्हिरे॑षा॒मा वि॒श्पती॑व॒ बीरि॑टऽइयाते। वि॒शाम॒क्तोरु॒षसः॑ पू॒र्वहू॑तौ वा॒युः पू॒षा स्व॒स्तये॑ नि॒युत्वा॑न् ॥४४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। वा॒वृ॒जे। व॒वृ॒जे॒ऽइति॑ ववृजे। सु॒ऽप्र॒या इति॑ सुप्र॒याः। ब॒र्हिः। ए॒षा॒म्। आ। वि॒श्पती॑व। वि॒श्पती॒वेति॑ वि॒श्पती॑ऽइव। बीरि॑टे। इ॒या॒ते॒ ॥ वि॒शाम्। अ॒क्तोः। उ॒षसः॑। पू॒र्वहू॑ता॒विति॑ पू॒र्वऽहू॑तौ। वा॒युः। पू॒षा। स्व॒स्तये॑। नि॒युत्वा॑न् ॥४४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:44


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब वायु सूर्य्य कैसे हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (पूर्वहूतौ) पूर्वजों ने प्रशंसा किये हुए (सुप्रयाः) सुन्दर प्रकार चलनेवाला (नियुत्वान्) शीघ्रकारी वेगादि गुणोंवाला (वायुः) पवन और (पूषा) सूर्य (एषाम्) इन मनुष्यों के (स्वस्तये) सुख के लिये (प्र, वावृजे) प्रकर्षता से चलता है (विशाम्) प्रजाओं के बीच (विश्पतीव) प्रजारक्षक दो राजाओं के तुल्य (बीरिटे) अन्तरिक्ष में (आ, इयाते) आते-जाते हैं, वैसे (अक्तोः) रात्रि और (उषसः) दिन के (बर्हिः) जल को प्राप्त होते हैं ॥४४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे मनुष्यो ! जो वायु (और सूर्य) न्यायकारी राजा के समान पालक हैं, वे ईश्वर के बनाये हैं, यह जानना चाहिये ॥४४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ वायुसूर्य्यौ कीदृशावित्याह ॥

अन्वय:

(प्र) (वावृजे) व्रजति गच्छति (सुप्रयाः) सुष्ठु प्रयः प्रगमनमस्य सः (बर्हिः) उदकम् (एषाम्) मनुष्याणाम् (आ) (विश्पतीव) प्रजापालकाविव (बीरिटे) अन्तरिक्षे (इयाते) गच्छतः (विशाम्) प्रजानां मध्ये (अक्तोः) रात्रेः (उषसः) दिवसस्य (पूर्वहूतौ) पूर्वैः शब्दितौ (वायुः) पवनः (पूषा) सूर्यः (स्वस्तये) सुखाय (नियुत्वान्) नियुतोऽश्वा आशुकारिणो वेगादिगुणा यस्य सः ॥४४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा पूर्वहूतौ सुप्रया नियुत्वान् वायुः पूषा चैषां स्वस्तये प्रवावृजे विशां विश्पतीव बीरिटे बर्हिरा इयाते तथाक्तोरुषसश्च बर्हिः प्राप्नुतः ॥४४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे मनुष्याः ! यौ वायुसूर्यौ न्यायकारी राजेव पालकौ स्तस्तावीश्वरनिर्मितौ वर्त्तेते इति बोध्यम् ॥४४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. हे माणसांनो ! वायू व सूर्य न्यायी राजाप्रमाणे असून, सर्वांचे पालन करतात. ते ईश्वराने निर्माण केलेले असतात हे जाणा.