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यजा॑ नो मि॒त्रावरु॑णा॒ यजा॑ दे॒वाँ२ऽऋ॒तं बृ॒हत्। अग्ने॒ यक्षि॒ स्वं दम॑म् ॥३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यज॑। नः॒। मि॒त्रावरु॑णा। यज॑। दे॒वान्। ऋ॒तम्। बृ॒हत् ॥ अग्ने॑। यक्षि॑। स्वम्। दम॑म् ॥३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:3


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वान् मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! आप (नः) हमारे (मित्रावरुणा) मित्र और श्रेष्ठ जनों तथा (देवान्) विद्वानों का (यज) सत्कार कीजिये, (बृहत्) बड़े (ऋतम्) सत्य का (यज) उपदेश कीजिये, जिससे (स्वम्) अपने (दमम्) घर को (यक्षि) संगत कीजिये ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वान् मनुष्यो ! हमारे मित्र, श्रेष्ठ और विद्वानों का सत्कार करनेहारे सत्य के उपदेशक और अपने घर के कार्यों को सिद्ध करनेहारे तुम लोग होओ ॥३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वद्भिर्मनुष्यैः किं कार्य्यमित्याह ॥

अन्वय:

(यज) सत्कुरु (नः) अस्माकम् (मित्रावरुणा) सुहृच्च्छ्रेष्ठौ (यज) देह्युपदिश। अत्रोभयत्र द्व्यचोऽतस्तिङः [अ०६.३.१३५] इति दीर्घः। (देवान्) विदुषश्च (ऋतम्) सत्यम् (बृहत्) महत् (अग्ने) विद्वन् (यक्षि) संगमय (स्वम्) स्वकीयम् (दमम्) गृहम् ॥३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! त्वं नो मित्रावरुणा देवांश्च यज, बृहदृतं यज, येन स्वं दमं यक्षि ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो जनाः ! अस्माकं मित्रश्रेष्ठविदुषां सत्कर्त्तारः सत्योपदेशकाः स्वगृहकार्य्यसाधका यूयं भवत ॥३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वान माणसांनो ! तुम्ही आमचे मित्र, श्रेष्ठ माणसे व विद्वान यांचा सत्कार करून सत्याचा उपदेश करा व त्यामुळे तुम्हाला तुमच्या कार्यात सफलता प्राप्त होईल.