इ॒मां ते॒ धियं॒ प्र भ॑रे म॒हो म॒हीम॒स्य स्तो॒त्रे धि॒षणा॒ यत्त॑ऽआन॒जे। तमु॑त्स॒वे च॑ प्रस॒वे च॑ सास॒हिमिन्द्रं॑ दे॒वासः॒ शव॑सामद॒न्ननु॑ ॥२९ ॥
इ॒माम्। ते॒। धिय॑म्। प्र। भ॒रे॒। म॒हः। म॒हीम्। अ॒स्य। स्तो॒त्रे। धि॒षणा॑। यत्। ते॒। आ॒न॒जे ॥ तम्। उ॒त्स॒व इत्यु॑त्ऽस॒वे। च॒। प्र॒स॒व इति॑ प्रऽस॒वे। च॒। सा॒स॒हिम्। स॒स॒हिमिति॑ सस॒हिम्। इन्द्र॑म्। दे॒वासः॑। शव॑सा। अ॒म॒द॒न्। अनु॑ ॥२९ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
(इमाम्) (ते) तव (धियम्) प्रज्ञां कर्म वा (प्र) (भरे) धरे (महः) महतः (महीम्) सुपूज्याम्। महीति वाङ्नामसु पठितम् ॥ (निघं०१.११) (अस्य) मम (स्तोत्रे) स्तवने (धिषणा) प्रज्ञा (यत्) यम् (ते) तान्। अत्र कर्मणि षष्ठी। (आनजे) व्यनक्ति (तम्) (उत्सवे) कर्त्तव्यानन्दसमये (च) (प्रसवे) उत्पत्तौ (च) (सासहिम्) भृशं सोढारम् (इन्द्रम्) परमबलयोगेन शत्रूणां विदारकम् (देवासः) विद्वांसः (शवसा) बलेन (अमदन्) आनन्देयुः (अनु) आनुकूल्येन ॥२९ ॥