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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (रसा) आनन्द देनेवाले तुम लोग (सुते) उत्पन्न हुए जगत् में (वृषभम्) अति बली (रोदस्योः) आकाश-पृथिवी को (अभिश्रियम्) सब ओर से शोभित करनेहारे (श्रियम्) शोभायुक्त सभापति राजा का (आ, सिञ्चत) अच्छे प्रकार अभिषेक करो और वह सभापति तुम लोगों को (दधीत) धारण करे ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि राज्य की उन्नति से जगत् का प्रकाशक, सुन्दरता आदि गुणों से युक्त, अति बलवान्, विद्वान्, शूर, पूर्ण अवयवोंवाले मनुष्य को राज्य में अभिषेक करें और वह राजा प्रजाओं में सुख धारण करे ॥२१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(आ) समन्तात् (सुते) उत्पन्ने जगति (सिञ्चत) (श्रियम्) शोभायुक्तम् (रोदस्योः) द्यावापृथिव्योः (अभिश्रियम्) अभितः शोभकम् (रसा) रसानन्दप्रदा जनाः। अत्र सुपामिति डादेशः। (दधीत) (वृषभम्) बलिष्ठम् ॥२१ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! रसा यूयं सुते वृषभं रोदस्योरभिश्रियं श्रियं सभापतिमासिञ्चत, स च युष्मान् दधीत ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यै राज्योन्नत्या जगतः प्रकाशः सौन्दर्यादिगुणवान् बलिष्ठो विद्वान् शूरः पूर्णाङ्गो जनो राज्येऽभिषेक्तव्यः, स च प्रजासु सुखं दध्यात् ॥२१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राज्याच्या उन्नतीसाठी सुंदर, कीर्तिमान, बलवान, विद्वान, शूर, पूर्ण स्वस्थ शरीर असलेल्या अशा व्यक्तीला माणसांनी राजा म्हणून निवडावे व राजाने प्रजेला सुखी ठेवावे.