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गाव॒ऽउपा॑वताव॒तं म॒ही य॒ज्ञस्य॑ र॒प्सुदा॑। उ॒भा कर्णा॑ हिर॒ण्यया॑ ॥१९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

गावः॑। उप॑। अ॒व॒त॒। अ॒व॒तम्। म॒हीऽइति॑ म॒ही। य॒ज्ञस्य॑। र॒प्सुदा॑ ॥ उ॒भा। कर्णा॑। हि॒र॒ण्यया॑ ॥१९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:19


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को आभूषण आदि की रक्षा करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (गावः) गौवें वा किरणें (उभा) दोनों (रप्सुदा) रूप देनेवाली (मही) बड़ी आकाश-पृथिवी की रक्षा करती हैं, वैसे तुम लोग (हिरण्यया) सुवर्ण के आभूषण से युक्त (कर्णा) दोनों कानों और (यज्ञस्य) संगत यज्ञ के (अवतम्) वेदी आदि अवयवों की (उप, अवत) निकट रक्षा करो ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्यकिरण और गौ आदि पशु सब वस्तुमात्र की रक्षा करते हैं, वैसे ही मनुष्यों को चाहिये कि सुवर्ण आदि के बने कुण्डल आदि आभूषणों की सदा रक्षा करें ॥१९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैराभूषणादि रक्षणीयमित्याह ॥

अन्वय:

(गावः) किरणा धेनवो वा (उप) समीपे (अवत) रक्षत (अवतम्) रक्षणीयं वेद्यादिगर्त्तम् (मही) महत्यौ द्यावापृथिव्यौ (यज्ञस्य) (रप्सुदा) ये रप्सुं रूपं दत्तस्ते (उभा) द्वे (कर्णा) कर्णौ श्रोत्रे (हिरण्यया) हिरण्यप्रचुरे ॥१९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा गाव उभा रप्सुदा मही रक्षन्ति, तथा यूयं हिरण्यया कर्णा यज्ञस्यावतमुपावत ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्यकिरणा गवादिपशवश्च सर्वं वस्तुजातं रक्षन्ति, तथैव मनुष्यै रुक्मादिनिर्मितं कुण्डलाद्याभूषणं सदा रक्षणीयम् ॥१९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे सूर्यकिरण सर्व वस्तूंचे रक्षण करतात व गाई इत्यादी पशूही सर्वांचे रक्षण करतात, तसेच माणसांनीही सुवर्णयुक्त आभूषणांचे व यज्ञाचे रक्षण करावे.